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इतिहास और परम्परा] परिषह और तितिक्षा
६. राख की वर्षा की । अत्यन्त उष्ण अग्नि-चूर्ण आकाश से बरसने लगा, किन्तु, बुद्ध के चरणों में वह चन्दन-चूर्ण बनकर गिरा।
७. रेत की वर्षा की। धुंधली, प्रज्वलित, अति सूक्ष्म धूल आकाश से बरसने लगी, किन्तु, बुद्ध के चरणों पर वह दिव्य पुष्प बनकर गिर पड़ी।
८. कीचड़ की वर्षा की। धुंधला व प्रज्वलित कीचड़ आकाश से बरसने लगा, किन्तु, बद्ध के चरणों पर वह भी दिव्य लेप बनकर गिरा।
६. चारों ओर सघन अंधकार फैलाना आरम्भ किया, किन्तु, वह भी बुद्ध के समीप पहुँचता हुआ, सूर्य-प्रभा से विनष्ट अन्धेरे की भाँति तिरोहित हो गया।
आँधी, वर्षा, पाषाण, आयुध, अंगारे, धधकती राख, बालू, कीचड़ और अन्धकार की वर्षा से भी मार जब बुद्ध को न भगा सका तो अपने सैनिकों को आदेश दिया-“खड़े-खड़े क्या देख रहे हो? इस कुमार को पकड़ो, मारो और भगाओ।" स्वयं गिरिमेखल हाथी पर बैठकर, चक्र को हाथ में ले बुद्ध के पास पहुँचा और बोला-"सिद्धार्थ ! इस आसन से उठ। यह तेरे लिए नहीं है, अपितु मेरे लिए है।"
बुद्ध ने उत्तर दिया-“मार ! तू ने न दश पारमिताएं पूर्ण की हैं, न उप-परिमिताएं और न परमार्थ पारमिताएं ही। तू ने पाँच महात्याग भी नहीं किये, न ज्ञाति-हित व लोक-हित के लिए ही कुछ किया । तू ने ज्ञान का आचरण भी नहीं किया है । यह आसन तेरे लिए नहीं, मेरे लिए ही है।"
मार अपने क्रोध के वेग को रोक न सका। उसने बुद्ध पर चक्र चलाया । बुद्ध ने अपनी दश पारमिताओं का स्मरण किया। वह चक्र उन पर फूलों का चँदवा बन कर ठहर गया। यह चक्र इतना तेज या कि मार क्रुद्ध होकर यदि एक ठोस पाषाण स्तम्भ पर फेंकता तो उसे बाँसों के कड़ीर (घास) की तरह खण्ड-खण्ड कर देता। मार परिषद् ने भी बुद्ध को आसन से भगाने के लिए बड़ी-बड़ी पत्थर शिलाएं फेंकी। दश पारमिताओं का स्मरण करते ही बुद्ध के पास आकर वे फूलमालायें बनकर पृथ्वी पर गिर पड़ीं।
चक्रवाल के किनारे पर खड़े देवता-गण उत्कन्धर होकर इस दृश्य को देख रहे थे। रह-रह कर उनके मस्तिष्क में एक ही चिन्तन उभर रहा था, सिद्धार्थ कुमार का सुन्दर स्वरूप नष्ट हो गया। अब वह क्या करेगा ?
पारमिताओं को पूर्ण करने वाले बोधिसत्त्वों की बुद्धत्व-प्राप्ति के दिन जो आसन प्राप्त होता है, वह मेरे लिए ही है ; जब मार ने यह कहा तो बुद्ध ने उससे पूछा-मार ! तेरे दान का साक्षी कौन है ?"
मार ने अपनी सेना की ओर हाथ फैलाते हुए कहा-"ये सारे मेरे साथी हैं।" सभी सैनिक मार का संकेत पाते ही एक साथ चिल्ला उठे- "हम साक्षी हैं, हम साक्षी हैं।" वह कोलाहल इतना हुआ कि जैसे पृथ्वी के फटने का शब्द होता हो।
मार ने बुद्ध से पूछा-"सिद्धार्थ-कुमार तू ने दान दिया है, इसका साक्षी कौन है ?"
बुद्ध ने स्पष्ट शब्दों में कहा-"तू ने जो दान दिया था, उसके साक्षी तो ये जीवित प्राणी (सचेतन) हैं; किन्तु, मैंने जो दान दिया था, यहाँ उसका जीवित साक्षी कोई नहीं है। अन्य जन्मों में दिए गए दान की बात तू रहने दे। केवल 'वेस्सन्तर जन्म' में मेरे द्वारा सात सप्ताह तक दिये गये दान की यह अचेतन ठोस महा पृथ्वी भी साक्षिणी है।"
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