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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ १६. भयंकर आंधी चलाई। वृक्ष मूल से उखड़ने लगे, मकानों की छतें उड़ने लगी और साँय-साँय का भयंकर निनाद जन-मानस को भयाकुल करने लगा। महावीर उस वातूल में कई बार उड़े और गिरे। १७. चक्राकर वायु चलाई । महावीर उसमें चक्र की तरह घूमने लगे। १८. काल चक्र चलाया। महावीर घुटने तक भूमि में धंस गये। प्रतिकूल परिषहों से जब महावीर तनिक भी विचलित न हुए तो उसे कुछ लज्जाका अनुभव हुआ, फिर भी उसने प्रयास न छोड़ा। उनका ध्यान-भङ्ग करने के लिए उसने कुछ अनुकूल प्रयत्न भी किये। १६. एक विमान में बैठकर महावीर के पास आया और बोला-'कहिये' आपको स्वर्ग चाहिए या अपवर्ग? अभिलाषा पूर्ण करूँगा।" २० अन्ततः उसने एक अप्सरा को लाकर महावीर के सम्मुख खड़ा किया। उसने भी अपने हाव-भाव व विभ्रम-विलास से उन्हें ध्यान-च्युत करने का प्रयत्न किया, किन्तु, सफलता नहीं मिली। रात्रि समाप्त हुई। प्रातःकाल महावीर ने अपना ध्यान समाप्त किया और बालुका की ओर विहार किया। असफल व्यक्ति अपने दुर्विचार को ज्यों-त्यों नहीं छोड़ता । उसका प्रयत्न होता है, जैसे-तैसे भी कुछ कर डालूं । यद्यपि महावीर को मेरु की भाँति अडोल देखकर वह सन्न रह गया, फिर भी उसने दुष्प्रयत्न नहीं छोड़े। महावीर बालुका की ओर जब विहार कर रहे थे, संगम ने उन्हें भीत करने के लिए मार्ग में पांच सौ चोरों का एक गिरोह खड़ा कर दिया। किन्तु, वे भीत न हुए। उन्होंने अपना मार्ग नहीं बदला । सहज गति से चलते रहे। बालुका से विहार कर वे सुयोग, सुच्छेता, मलय और हस्तिशीर्ष आये। संगम वहाँ भी उनके साथ था और उन्हें नाना परिषह देता रहा। महावीर तोसलि गाँव के उद्यान में ध्यानस्थ थे। संगम साधु का वेष बनाकर गाँव में गया और वहाँ सेंध लगाने लगा। जनता ने उसे चोर समझ कर पकड़ लिया और उसे बरी तरह पीटने लगी । रुंआसी शक्ल में संगम ने कहा- "मुझे क्यों पीटते हैं ? मैं तो अपने गुरु की आज्ञा का पालन कर रहा हूँ।" जनता ने पूछा--"तेरा गुरु कौन है और कहाँ है ?" संगम ने उद्यान में ध्यानमग्न महावीर को बता दिया। जनता उद्यान में आई। महावीर को ध्यानस्थ देखा । जनता ने उन पर आक्रमण कर दिया। उन्हें बांधकर गांव की ओर ले जाने की तैयारी करने लगे। महाभूतिल ऐन्द्रजालिक सहसा वहाँ आ पहुँचा। उसने गांव वालों को महावीर का परिचय दिया और उन्हें मुक्त कराया। जनता उस तथाकथित साधु की खोज में लगी। वह कहीं दिखाई नहीं दिया। गाँव वालों को स्वतः यह ज्ञात हो गया कि इसमें अवश्य ही कोई षड्यंत्र था। १.प्रस्तुत बीस परिषह आवश्यक चूणि (प्रथम भाग, पत्र ३११) के आधार से हैं। कप्प सुत्त में ये ही परिषह कुछ क्रम-भेद और स्वरूप-भेद से हैं। २. आवश्यक नियुक्ति, गा० ५०८। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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