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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
से प्रार्थना की, किन्तु, बुद्ध उस ऐश्वर्य को ग्रहण करने को प्रस्तुत न हुए । अन्ततः राजा ने साग्रह एक प्रार्थना की- “बुद्ध होते ही सबसे पहले आपको मेरे राज्य में आना होगा ।"
बुद्ध ने राजा को वचन दिया और आगे प्रस्थान किया । क्रमशः विचरते हुए वे आलारकालाम तथा उद्दक- रामपुत्र के पास पहुँचे और वहाँ समाधि की शिक्षा ली। कुछ दिनों बाद उन्हें अनुभव हुआ, यह ज्ञान का मार्ग नहीं है । यह समाधि भावना अपर्याप्त है । देवता- सहित सभी लोकों को अपना बल-वीर्य दिखाने के लिए और परम तत्त्व पाने के लिए वे उरुवेला पहुँचे। उन्हें वह प्रदेश रमणीय प्रतीत हुआ; अतः वहाँ ठहर कर महान् उद्योग आरम्भ कर दिया |
कौण्डिन्य आदि पाँच परिव्राजक भी गांवों, नगरों व राजधानियों में भिक्षाचरण करते हुए बुद्ध के पास वहीं पहुँचे । वे इस आशा में थे कि सिद्धार्थकुमार अब शीघ्र ही बुद्ध होंगे । छः वर्ष तक वे उनकी उपासना में लगे रहे, आश्रम की सफाई आदि से उनकी सेवा करते रहे तथा बुद्धत्व प्राप्ति की व्यग्रता से प्रतीक्षा करते रहे । बुद्ध दुष्कर तपस्या करते हुए तिल - तण्डुल से काल-क्षेप करते रहे । अन्ततः उन्होंने आहार ग्रहण करना भी छोड़ दिया । देवता ने रोम कूपों द्वारा उनके शरीर में ओज डाल दिया, किन्तु, निराहार रहने से वे अत्यन्त दुर्बल हो गये। उनका कनकाभ शरीर काला पड़ गया। शरीर में विद्यमान महापुरुषों के बत्तीस लक्षण छिप गये । एक बार श्वास का अवरोध कर ध्यान करते समय क्लेश से अत्यन्त पीड़ित हो, बेहोश होकर चंक्रमण की वेदिका पर गिर पड़े। कुछ देवताओं ने कहा - "श्रमण गौतम मर गये । "
बुद्ध को अनुभव हुआ, यह दुष्कर तपस्या बुद्धत्व प्राप्ति का मार्ग नहीं है । उन्होंने ग्रामों और बाजारों में भिक्षाटन कर भोजन ग्रहण करना आरम्भ कर दिया। उनका शरीर पुनः स्वर्णवर्ण हो गया ।
पंचवर्गीय भिक्षुओं ने सोचा – “छः वर्ष तक दुष्कर तपस्या करने पर भी यह बुद्ध नहीं हो सका; अब जब कि ग्रामादि से स्थूल आहार ग्रहण करने लगा है तो बोधि- प्राप्ति कैसे सम्भव होगी ? यह तो लालची हो गया है और तपो भ्रष्ट भी । इसकी और प्रतीक्षा करने से हमारा क्या मतलब सिद्ध हो सकेगा ?" उन्होंने बुद्ध को वहीं छोड़ दिया ओर अपने-अपने पात्र - चीवर आदि ले अठारह योजन दूर ऋषिपतन को चले गये ।
उरुवेला प्रदेश के सेनानी कस्बे में सेनानी कुटुम्बी के घर सुजाता कन्या उत्पन्न हुई । तारुण्य में सुजाता ने बरगद से प्रार्थना की- “यदि समान जाति के कुल घर में मेरा विवाह हो और मेरी पहली सन्तान पुत्र हो, तो मैं प्रतिवर्ष एक लाख के खर्च से तेरी पूजा करूँगी ।" उसकी वह प्रार्थना पूर्ण हुई । बुद्ध की दुष्कर तपश्चर्या का छठा वर्ष पूर्ण हो रहा था । वैशाख पूर्णिमा का दिन था । सुजाता ने पूजा करने के अभिप्राय से हजार गायों को यष्टिमधु ( मुलेठी ) के वन में चरवा कर उनका दूध दूसरी पाँच सौ गायों को पिलाया फिर उनका दूध ढाई सौ गायों को पिलाया । क्रमशः सोलह गायों का दूध आठ गायों को पिलाया। इस प्रकार दूध की सघनता, मधुरता और ओज के लिए उसने क्षीर-परिवर्तन किया । पूर्णिमा के ब्रह्म मुहूर्त में आठ गायों को दुहवाया । नये बर्तन में दूध डालकर सुजाता ने खीर पकाना आरम्भ किया ।
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