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________________ इतिहास और परम्परा साधना १५३ जाने को कहते । मारने-पीटने पर भी वे अपनी समाधि में लीन रहते और चले जाने का कहने पर तत्काल अन्यत्र चले जाते।। आहार के नियम भी महावीर के बड़े कठिन थे। नीरोग होते हुए भी वे मिताहारी थे। मानापमान में सम्माव रखते हुए घर-घर भिक्षाचरी करते थे। कभी दीनभाव नहीं दिखाते थे। रसों में उन्हें आसक्ति न थी और न वे कभी रसयुक्त पदार्थों की माकांक्षा ही करते थे। भिक्षा में रूखा-सूखा, ठण्डा, वासी, उड़द, सूखे भात, मथु, यवादि नीरस धान्य का जो भी आहार मिलता, उसे वे शान्त भाव से और सन्तोषपूर्वक ग्रहण करते थे। एक बार निरन्तर आठ महीनों तक वे इन्हीं चीजों पर रहे। न मिलने पर भी वे दीन नहीं होते थे। पखवाड़े तक, मास तक और छ:-छः मास तक जल नहीं पीते थे। उपवास में भी विहार करते थे। ठण्डा-बासी आहार भी वे तीन-तीन, चार-चार, पांच-पांच दिन के अन्तर से करते थे। निरन्तर नहीं करते थे। स्वाद-जय उनका मुख्य लक्ष्य था। भिक्षा के लिए जाते समय मार्ग में कबूतर आदि पक्षी धान चुगते हुए दिखाई देते तो वे दूर से ही टलकर चले जाते । उन जीवों के लिए वे विघ्नरूप न होते। यदि किसी घर में ब्राह्मण, श्रमण, भिखारी, अतिथि, चण्डाल, बिल्ली या कुत्ता आदि को कुछ पाने की आशा में या याचना करते हुए वे वहाँ देखते, तो उनकी आजीविका में बाधा न पहुंचे, इस अभिप्राय से वे दूर से ही चले जाते। किसी के मन में द्वेष-भाव उत्पन्न होने का वे अवसर ही नहीं आने देते। शरीर के प्रति महावीर की निरीहता बड़ी रोमाञ्चक थी। रोग उत्पन्न हान पर भो वे औषध-सेवन नहीं करते थे। विरेचन, वमन, तेल-मर्दन, स्नान और दन्त-प्रक्षालन नहीं करते थे । आराम के लिए पर नहीं दबाते थे। आंखों में किरकिरी गिर जाती तो उसे भी वे नहीं निकालते। ऐसी परिस्थिति में आँख को भी वे नहीं खुजलाते । शरीर में खाज आती, तो उस पर भी विजय पाने का प्रयत्न करते । महावीर कमी नींद नहीं लेते थे। उन्हें जब कभी नींद अधिक सताती, वे शीत में मुहूर्तभर चंक्रमण कर निद्रा दूर करते । वे प्रतिक्षण जागृत रह ध्यान व कायोत्सर्ग में ही लीन रहते। __वसति-वास में महावीर न गीतों में आसक्त होते थे और न नृत्य व नाटकों में । न उन्हें दण्ड-युद्ध में उत्सुकता थी और न उन्हें मुष्टि-युद्ध में। स्त्रियों व स्त्री-पुरुषों को परस्परा काम-कथा में लीन देखकर भी वे मोहाधीन नहीं होते थे । वीतराग-भाव की रक्षा करते हुए वे इन्द्रियों के विषयों में विरक्त रहते थे। ___ उत्कटक, गोदोहिका, वीरासन प्रभृति अनेक आसनों द्वारा महावीर निविकार ध्यान करते थे । शीत में वे छाया में बैठकर ध्यान करते और ग्रीष्म में उत्कटुक आदि कठोर आसनों के माध्यम से चिलचिल्लाती धूप में ध्यान करते। कितनी ही बार जब वे गृहस्थों की बस्ती में ठहरते, तो रूपवती स्त्रियाँ, उनके शारीरिक सौन्दर्य पर मुग्ध हो, उन्हें विषयाथं आमन्त्रित करती। ऐसे अवसर पर भी महावीर आंख उठाकर उनकी ओर नहीं देखते थे और अन्तर्म ख १. साधना-काल के बारह वर्ष तेरह पखवाड़ों में महावीर ने केवल एक बार मुहूर्त भर नींद ली; ऐसा माना जाता है। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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