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________________ साधना महावीर का साधना-काल १२ वर्ष और १३ पक्ष का होता है और बुद्ध का साधनाकाल लगभग ६ वर्ष का। उरकट तपस्या, उत्कट सहिष्णुता और उत्कट ध्यान-परायणता दोनों ही युग-पुरुषों की साधना में मिलती है। प्रारम्भ में बुद्ध महावीर की तरह ही तपस्वी जीवन जीते हैं । कृशकाय व दुर्वर्ण हो जाते हैं और एक दिन चंक्रमण वेदिका पर गिर पड़ते हैं। तब उन्हें अनुभव होता है-यह दुष्कर तपस्या बुद्धत्व-प्राप्ति का मार्ग नहीं है । पुन: वे अन्नभोजी हो जाते हैं और सुजाता की खीर खाकर सम्बोधि-प्राप्त करते हैं। उन्होंने माना-सम्बोधि का कारण ध्यान है। उनके समग्र साधना-क्रम को देखते हुए लगता है, बुद्ध ने तपस्या को उसी प्रकार अनुपादेय ठहराया, जैसे कोई किसान अंकुर फूटने के अनन्तरित मेघ को अंकुर फूटने का एकमात्र निमित्त मान बैठे। भूमि का उत्खनन, बीज का आरोपण तथा पूर्ववर्ती मेघों का वर्षण उसकी दृष्टि में कुछ नहीं रह जाते । वस्तुस्थिति यह है कि कुल निमित्त मिलकर ही अंकुर स्फोटन कर पाते हैं। महावीर एक वर्ष से कुछ अधिक सचेल रहते हैं, फिर अचेलावस्था में ही विहार करते है।' बुद्ध प्रवज्या के समय गैरिक वस्त्र धारण करते हैं । तपस्या का प्रकार भी बहुत कुछ समान रहता है। महावीर कभी सूखे भात, मथु और उड़द पर निर्भर होते हैं; बुद्ध तिल-तण्डुल आदि पर । प्रथम भिक्षान्न खाने के समय बुद्ध के उदर की आंतें मानो मुंह की ओर से बाहर निकलने लगती हैं, पर, बुद्ध अपने आपको सम्भालकर वहीं भोजन कर लेते हैं। भिक्षान्त की विरसता का वर्णन दोनों ही परम्परा में बहुत विशद मिलता है। __ महावीर के विषय में आईक मुनि-संलाप में जैसे गोशालक ने कहा-"महावीर पहले एकान्त विहारी श्रमण था। अब वह बड़ी परिषद् में उपदेश करने लगा है। यह आजीविका चलाने का ढोंग है", उसी प्रकार बुद्ध को भी बोधि-सम्प्राप्ति के पश्चात् पंचवर्गीय भिक्षु १. आयारंग, प्रथम श्रुतस्कन्ध, अ०६। २. ललित विस्तर तथा हिन्दू सभ्यता, पृ. २३८ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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