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इतिहास और परम्परा ]
जन्म और प्रव्रज्या
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सारथी ने विनम्रता से उत्तर दिया “देव ! आप, हम और सभी लोगों के लिए बुढ़ापा अनिवार्य है ।"
बोधिसत्त्व बोले -" तो भद्र ! उद्यान - भूमि में जाना स्थगित करो । यहीं से रथ को मोड़ो और अन्तःपुर की ओर लौट चलो।"
सारथी ने तत्काल रथ मोड़ा और अन्तःपुर पहुँच गये । बोधिसत्व उदासीन होकर पुनः पुनः सारथी के उत्तर पर चिन्तन करने लगे । शीघ्र ही महलों में लौट आने से राजा को इस बारे में जिज्ञासा हुई । तत्काल उत्तर मिला - "मार्ग में कुमार ने एक वृद्ध को देखा था । राजा के मुँह से आह निकली - " भविष्य वक्ताओं ने वृद्ध देखकर ही प्रव्रजित होना बताया था; अतः पुत्र के लिए शीघ्र ही नृत्य आदि की व्यवस्था करो । भोग-लिप्त रहने से प्रव्रज्या का विचार हट जायेगा । चारों दिशाओं में आधे योजन तक पहरा और बढ़ा दो तथा सतकता के लिए सभी प्रतिहारों को विशेष सूचित करो। "
बोधिसत्त्व एक दिन फिर उद्यान जा रहे थे। उन्होंने मार्ग में देवताओं द्वारा निर्मित
था व दूसरों के द्वारा उठाया, देखा और सारथी से कहा। स्वर भी दूसरों से मेल नहीं
एक रोगी को देखा। वह अपने ही मल-मूत्र से सना हुआ बैठाया तथा लेटाया जा रहा था । बोधिसत्त्व ने दूर से उसे "यह पुरुष कौन है ? इसकी आंखें भी दूसरों की तरह नहीं है खाता है ।"
सारथी ने कहा - "देव ! यह रोगी है; अतः इसका शरीर शिथिल हो चुका है । अब वह सम्भवंतः उठ न सके ।"
बोधिसत्त्व ने कहा--"तो क्या मैं भी व्याधिधर्मा हूँ ? व्याधि सभी के लिए अनिवार्य है ?"
सारथी ने कहा--"देव ! इसका कोई अपवाद नहीं हो सकता ।"
बोधिसत्त्व का मन विराग से भर गया । उन्होंने रथ को वापिस मोड़ा और बिना घूमे ही वे महलों में लौट आए।
राजा ने उनकी उदासीनता का पता लगाया और पहरे को चारों ओर पौन योजन तक विशेष रूप से बढ़ा दिया ।
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किसी एक विशेष दिन बोधिसत्त्व फिर घूमने के लिए चले । मार्ग में उन्होंने देवनिर्मित एक दृश्य देखा। वहां बहुत सारे व्यक्ति एकत्रित होकर एक शिविका (अर्थी) बना रहे थे । बोधिसत्त्व ने उसके बारे में जिज्ञासा की । सारथी ने बताया – “कोई मनुष्य मर गया है । उसकी अन्त्येष्टि के लिए उसके पारिवारिकों, मित्रों व अन्य व्यक्तिओं द्वारा तैया रिया की जा रही हैं ।"
बोधिसत्त्व ने वहां चलने का संकेत किया । सारथी उन्हें वहां ले आया । उन्होंने मृतक को देखा और पूछा - "मृत्यु क्या चीज है ?"
सारथी ने उत्तर दिया- "देव ! अब इसका माता-पिता, ज्ञाति स्वजन, मित्र आदि से कोई सम्पर्क नहीं रहा । न यह उन्हें देख सकेगा और न इसे वे देख सकेंगे । इसका सबसे सम्बन्ध टूट गया है ।"
बोधिसत्त्व ने पूछा - "क्या मैं भी मरणधर्मा हूँ ? मेरी भी मृत्यु अनिवार्य है ?" सारथी ने कहा- -" इसका कोई भी अपवाद नहीं हो सकता । "
बोधिसत्त्व ने उदासीनता के साथ कहा - " अब मुझें घूमने नहीं जाना है । वापिस महलों की ओर चलो।"
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