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१४४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :१ के घर को बिना हानि पहुँचाये छलांग भर कर राजा के पास आ खड़े हुए । जनता ने विपुल हर्ष-ध्वनि से उनका स्वागत किया तथा उपहार में बहुमूल्य वस्त्र व आभूषणों का ढेर लगा दिया। वह धन अठारह करोड़ था।
राजा इस प्रदर्शन से फूला नहीं समाया । उसने बोधिसत्त्व का वर्धापन किया और उस विद्या का नाम तथा उसके ज्ञाता के बारे में पूछा।
बोधिसत्त्व ने उत्तर दिया- "इस विद्या का नाम वाणावरोधिनी है और इसका ज्ञाता जम्बूद्वीप मे मेरे अतिरिक्त दूसरा नहीं है ।"
राजा ने निर्देश किया-"पुत्र ! दूसरा प्रदर्शन भी करो।"
बोधिसत्त्व ने कहा-'देव ! ये चारों धनुर्धारी चारों कोनों पर खड़े रहकर मुझे नहीं बींध सके, किन्तु, मैं इन चारों को चारों कोनों में खड़े रहने पर भी एक ही बाण से बींध दूंगा।" - धनुर्धारियों ने खड़े होने का साहस नहीं किया ; अतः चारों कोनों में केले के चार स्तम्भ खड़े किये गए । बाण के पुंख में लाल रंग का धागा पिरोया और एक खम्भे की ओर उसे छोड़ा। तीर ने उस स्तम्भ को बींध डाला। वह वहां से स्वतः दूसरे तीसरे, और क्रमशः चौथे स्तम्भ को बींधता हुआ पहले स्तम्भ में से निकल कर बोधिसत्त्व के हाथ में आ गया। केले के स्तम्भों में धागा पिरोया गया। चक्र बींधने की इस विद्या के सफल प्रयोग पर जनता ने सहस्र घोषों के साथ बोधिसत्त्व का वर्धापन किया।
बोधिसत्त्व ने इस प्रकार शर-यष्टि, शर-रज्जु तथा शर-वेणी का प्रदर्शन किया। शरप्रासाद, शर-म.डप, शर-सोपान व शर-पुष्करिणी की रचना की। शर-पद्म खिलाया। शरवर्षा बरसाई । बारह प्रकार की असाधारण विद्याओं का प्रदर्शन करने के अनन्तर उन्होंने सात मोटी-मोटी वस्तुओं को चीर डाला। उनमें आठ अंगुल मोटा अंजीर का फलक, चार अंगुल मोटी चट्टान, दो अंगुल मोटा ताम्बे का पत्ता, एक अंगुल मोटा लोहे का पत्ता चीर डाला। एक साथ बंधे हुए सौ फलकों को भी चीर डाला । बोधिसत्त्व के इस शिल्प-प्रदर्शन पर सभी सम्बन्धियों की आशंकाएं दूर हो गई। चार पूर्व लक्षण
बोधिसत्त्व के मन में एक दिन उद्यान-विहार की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने सारथी से रथ जोतने के लिए कहा। सारथी बहुत दक्ष था। उसने तत्काल उत्तम रथ को अलंकृत किया, कमल-पत्र सदृश देशीय चार मांगलिक अश्वों को उममें जोता और बोधिसत्त्व को सूचना दी। बोधिसत्त्व देव-विमान सदश उस रथ पर आरूढ़ हो कर उद्यान की ओर चले। देवताओं ने सोचा, सिद्धार्थ-कुमार के बुद्धत्त्व प्राप्त करने का समय समीप है; अतः हम इनके समक्ष पूर्व लक्षण प्रस्तुत करें। उन्होंने जरा से जर्जरित, विदीर्ण-दन्त, पक्व-केश, झुका हुआ शरीर, हाथ में यष्टि व कम्पित-वपू एक देव-पत्र को बोधिसत्त्व व सारथी के समक्ष प्रस्तुत किया। उसे वे दो ही व्यक्ति देख सकते थे। बोधिसत्त्व ने सारथी से तत्काल पूछा - "सौम्य! यह पुरुष कौन है ? इसका शरीर और केश दूसरों से भिन्न है।"
सारथी ने उत्तर दिया- "देव ! यह बूढ़ा हो चुका है।" बोधिसत्त्व ने सहज गंभीरता से पूछा-"बूढ़ा क्या होता है ?"
सारथी ने पुनः उत्तर दिया--"देव ! यह जर्जर-काय हो चुका है ; अतः बूढ़ा कहा जाता है। इसे अब बहुत दिन नहीं जीना है।"
__ बोधिसत्त्व का मानस ऊहापोह से भर आया। उन्होंने पूछा --"तो क्या मैं भी बूढ़ा होऊँगा? क्या यह अनिवार्य धर्म है ?"
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