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________________ इतिहास और परम्परा जन्म और प्रव्रज्या १४३ शीघ्र ही कनात में दौड़ आई और बोधिसत्त्व को बिछौने पर आसन साधे बैठे देखा । वे बहुत चमत्कृत हुई। दौड़ कर राजा के पास गईं और राजा को सारा वृत्त सुनाया। राजा भी शीघ्र ही वहाँ आया और उस चमत्कार को देखकर विस्मित हुआ। तत्काल वन्दना करते हुए बोला-"पुत्र ! तुझे यह मेरी दूसरी वन्दना है।" बोधिसत्त्व क्रमशः सोलह वर्ष के हुए। राजा ने उनके लिए तीनों ही ऋतुओं के उपयुक्त तीन महल बनवाये । एक नौ मंजिल का था, एक सात मंजिल का और एक पाँच मंजिल का। उनके मनोरंजन के लिए चालीस हजार नर्तिकाओं की व्यवस्था की गई। वे देवताओं की भाँति अप्सराओं से घिरे, अलंकृत नर्तकियों से परिवृत और प्रशिक्षित महिलाओं द्वारा वादित वाद्यों से सेवित महासम्पत्ति का उपभोग करते हुए ऋतुओं के क्रम से प्रासादों में रह रहे थे । राहुल माता देवी उनकी अग्र-महिषी थी। शिल्प-प्रदर्शन एक दिन ज्ञाति-जनों में चर्चा चली- "सिद्धार्थ क्रीड़ा में ही रत रहता है। किसी कला के अध्ययन में रुचि नहीं रखता। कभी युद्ध-प्रसंग छिड़ने पर वह क्या करेगा?' यह चर्चा राजा तक पहुँची। उसने बोधिसत्त्व को अपने पास बुलाया और कहा-."तात ! किसी भी कला को न सीख कर तू क्रीड़ा में ही लीन रहता है । क्या इसे ही उचित समझता है ?'' बोधिसत्त्व ने सगर्व उत्तर दिया-"मेरे लिए कोई शिल्प-शिक्षण अवशिष्ट नहीं है। आप नगर में उद्घोषणा करवा दें कि आज से सात दिन मैं शिल्प-प्रदर्शन करूँगा।" राजा ने वैसा ही किया। नियत समय व नियत स्थान पर सहस्रों की परिषद् एकत्रित हो गई । साठ हजार क्षण वेध, बाल वेध आदि के ज्ञाता धनुर्धारी भी विशेष निमंत्रण पर वहाँ आये । बोधिसत्व ने कवच धारण कर कंचुक में प्रवेश किया। सिर पर उष्णीष पहना । मेंढ़े के सींग वाले धनुष में मूंगे के रंग की डोरी बांधी । पीठ पर तूणीर कसा। बाँये कंधे पर तलवार लटकाई और वज्र की नोंक वाले तीर को नाखून पर घूमाते हुए वे उस परिषद के बीच उपस्थित हए । जनता ने अपार हर्ष-ध्वनि से उनका स्वागत किया। बोधिसत्त्व ने राजा से कहा ---"उपस्थित धनुर्धारियों में से चार सिद्धहस्त क्षण-वेधी, बाल-वेधी. शब्द-वेधी व शर-वेधी धनुर्धारियों को मेरे समक्ष उपस्थित करें।" राजा ने वैसा ही किया। बोधिसत्व ने समचतुरस्र एक मण्डप बना कर उसके चारों कोनों पर उन चारों धनुर्धारियों को खड़ा किया। एक-एक धनुर्धारी को तीस-तीस हजार तीर दिये गए और प्रत्येक को एकएक कुशल सहयोगी भी दिया गया । बोधिसत्त्व मण्डप के बीच खड़े हुए। वे वज्रमुख नोक वाला तीर अपने नाखून पर घूमा रहे थे। उन्होंने कहा-~-"महाराज ! ये चारों धनुर्धारी एक साथै तीर चला कर मुझे बींधे । मेरे पर इनके तीरों का कोई असर नहीं होगा।" चारों ही धनुर्धारियों ने सगर्व राजा से कहा--"महाराज ! हम लोग क्षण-वेधी, बाल-वेधी, शब्द-वेधी और शर-वेधी हैं ; अतः आप कुमार को इस कार्य से उपरत करें। कुमार तरुण हैं । हम इन्हें नहीं बींधेगे।" बोधिसत्त्व ने उसका प्रतिवाद करते हुए दृढ़ता से कहा - "यदि तुम्हारे में सामर्थ्य है तो मुझे बींध डालो। मैं तुम्हें चुनौती देता हूँ।" धनुर्धारियों का स्वाभिमान फड़क उठा। उन्होंने एक साथ तीर छोड़े। बोधिसत्त्व ने उन चारों के बाण बीच ही में काट डाले। उन्होंने अपने चारों ओर के बाणों सा बना डाला। उससे चारों के बाणों का असर उन पर नहीं होता था, अपितु बोधिसत्त्व के बाणों से वे चारों त्रसित हो रहे थे। चारों के सारे तीर समाप्त हो गये । बोधिसत्त्व तीरों ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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