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________________ १४२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : १ कहा - " ऐसे लक्षणों वाला यदि गृहस्थ रहता है तो चक्रवर्ती राजा होता है और यदि प्रव्रजित होता है तो बुद्ध ।" और फिर उन्होंने चक्रवर्ती की श्री सम्पत्ति का भी वर्णन किया । उनमें सबसे कम अवस्था वाले कौण्डिन्य गोत्रीय तरुण ब्राह्मण ने बोधिसत्त्व के विशिष्ट लक्षणों को देख एक ही अंगुली उठाई और दृढ़तापूर्वक एक ही प्रकार का भविष्य कहा -" इस के गृहस्थ में रहने की कोई सम्भावना नहीं है । यह महाज्ञानी बुद्ध होगा । यह अधिकारी, अन्तिम जन्म-धारी, प्रज्ञा में अन्य जनों से बढ़ा-चढ़ा है; अतः ऐसे पुरुष के गार्हस्थ्य में रहने की कोई संभावना नहीं है । निश्चित ही यह बुद्ध होगा ।" राजा ने प्रश्न किया - "मेरा पुत्र क्या देखकर प्रव्रजित होगा ?" उत्तर मिला - "चार पूर्व लक्षण ?" राजा ने पुनः पूछा - "कौन-कौन से चार लक्षण ?” ब्राह्मण ने कहा- “वृद्ध, रोगी, मृत और प्रव्रजित । " 1 राजा ने तत्काल कठोर आदेश दिया- "चारों ही प्रकार के लक्षण मेरे पुत्र के पास न आने पायें ; ऐसा प्रबन्ध होना चाहिए। मुझे इसके बुद्ध बनने से कोई प्रयोजन नहीं है । मैं तो इसे दो सहस्र द्वीपों से घिरे चारों महाद्वीपों का आधिपत्य करते हुए तथा छत्तीस योजन परिधि वाली परिषद् के बीच व मुक्त आकाश में विचरते देखना चाहता हूँ ।" राजा ने चारों दिशाओं में तीन-तीन कोश की दूरी पर कड़ा पहरा बिठा दिया और उन्हें निर्देश कर दिया, चारों ही प्रकार के व्यक्ति इस सीमा में प्रवेश न करें । उस दिन उस मांगलिक स्थान पर अस्सी हजार ज्ञाति-सम्बन्धियों ने प्रतिज्ञा की -- "कुमार चाहे बुद्ध हो या राजा, हम इसे अपना एक-एक पुत्र देंगे । यदि वह बुद्ध होगा, तो क्षत्रिय साधुओं से व राजा होगा, तो क्षत्रिय कुमारों से पुरस्कृत तथा परिवारित होकर विचरेगा । " एक चमत्कार शुद्धोदन ने बोधिसत्त्व की परिचर्यार्थ उत्तम रूप सम्पन्न व निर्दोष धाइयां नियुक्त कीं । बोधिसत्त्व अनन्त परिवार तथा शोभा व श्री के साथ बढ़ने लगे । एक दिन क्षेत्रमहोत्सव था । सभी लोगों ने नगर को देव - विमान की तरह अलंकृत किया। सभी दास, प्रेष्य आदिनये वस्त्र पहिन व गंध-माला आदि से विभूषित हो राजमहल में एकत्र हुए। राजा के एक हजार हलों की खेती थी । एक कम आठ सौ रुपहले हल थे । राजा का हल रत्न- सुवर्ण जटित था। बैलों के सींग और रस्सी कोड़े भी सुवर्ण - खचित ही थे । राजा पुत्र व पूरे दल-बल के साथ वहाँ पहुँचा। वहीं विशाल व सघन छाया वाला एक जामुन का वृक्ष था। उसके नीचे कुमार की शय्या बिछाई गई । ऊपर स्वर्ण- तार- खचित चंदवा तनवाया गया। कनात से घेर कर पहरा लगा दिया गया । सब तरह से अलंकृत होकर अमात्यगण सहित राजा हल जोतने के स्थान पर गया । उसने सुनहले हल को पकड़ा, अमात्यों ने एक कम आठ सौ रुपहले हलों को और कृषकों ने दूसरों हलों को । सभी व्यक्ति हलों को जोतने लगे । राजा भी उन सब के साथ इस पार से उस पार व उस पार से इस पार आ-जा रहा था । समारोह को देखने के लिए बड़ी भीड़ जमा हो गई थी । बोधिसत्त्व की परिचर्या में बैठी सभी धाइयां भी समारोह देखने के लिए कनात से बाहर चली आईं। बोधिसत्त्व अपने पास किसी को बैठे न देख, शीघ्रता से उठे । श्वास-प्रश्वास का ध्यान दिया और प्रथम ध्यान में लीन हो गये । उस समय सभी वृक्षों की छाया घूम गई थी, किन्तु, बोधिसत्त्व जिस वृक्ष के नीचे बैठे थे, उसकी छाया गोलाकर ही रही। अचानक धाइयों को उनका ध्यान आया । वे Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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