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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :१ दिशा से होकर उक्त स्थान पर पहुंचे । रूपहली माला के सदृश उनकी सूड में श्वेत कमल था। मधुर नाद करते हुए स्वर्ण विमान में प्रविष्ट हुए। शय्या को तीन प्रदक्षिणा दी और दाहिनी बगल चीरते हुए कुक्षि में प्रविष्ट हुए।" उस दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था।
देवी महामाया ने दूसरे दिन स्वप्न के बारे में राजा शुद्धोधन को सूचित किया। राजा ने चौसठ प्रधान ब्राह्मणों को बुलाया । उनके सम्मान में भूमि को गोबर से लिपा गया, धान की खीलों से मंगलाचार किया गया और बहुमूल्य आसन बिछाये गये। ब्राह्मण आए और उन सत्कृत आसनों पर बैठे। उन्हें घी, मधु, शक्कर से भावित सुस्वादु खीर स्वर्ण-रजत की थालियों में भर कर और वैसी ही थालियों में ढंककर परोसी गई । नये वस्त्रों व कपिला गौ आदि से उन्हें सन्तर्पित किया गया। आगत ब्राह्मणों की समस्त इच्छाएं पूर्ण कर उनका ध्यान केन्द्रित करते हए राजा ने स्वप्न-फल के बारे में जिज्ञासा की। ब्राह्मणों ने उत्तर दिया .."महाराज ! चिन्ता मुक्त हों। महारानी ने जो गर्भ-धारण किया है, वह बालक है, कन्या नहीं है। आपके पुत्र होगा । यदि वह गार्हस्थ्य में रहा, तो चक्रवर्ती होगा और परिव्राजक बना तो महाज्ञानी बुद्ध होगा।"
बोधिसत्त्व के गर्भ में आने के समय समस्त दस सहस्र ब्रह्माण्ड एक प्रकार से कांप उठे। बत्तीस पूर्व शकुन (लक्षण) प्रकट हुए। दस सहस्र चक्रवालों में अनन्त प्रकाश हो उठा। प्रकाश की उस क्रान्ति को देखने के लिए ही मानो अंधों को आँखें मिल गईं, बधिर सुनने लगे, मूक बोलने लगे, कुब्ज सीधे हो गये, पंगु पाँवों से अच्छी तरह चलने लगे। बेड़ी-हथकड़ी आदि बन्धनों में जकड़े हुए प्राणी मुक्त हो गये। सभी नरकों की आग बुझ गई । प्रेतों की क्षुधापिपासा शान्त हो गई । पशुओं का भय जाता रहा। समस्त प्राणियों के रोग शान्त हो गये । सभी प्राणी प्रिय भाषी हो गये । घोड़े मधुर स्वर से हिनहिनाने लगे। हाथी चिंघाड़ने लगे। सारे वाद्य स्वयं बजने लगे। मनुष्यों के हाथों के आभूषण बिना टकराये ही शब्द करने लगे। सब दिशाएं शान्त हो गई । सुखद, मृदुल व शीतल हवा चलने लगी। असमय ही वर्षा बरसने लगी। पृथ्वी से भी पानी निकल कर बहने लगा। पक्षियों ने आकाश में उड़ना छोड़ दिया। नदियों ने वहना छोड़ दिया। महासमुद्र का पानी मीठा हो गया। सारा भूमि-मण्डल पंचरंगे कमलों से ढ़क गया। जल-थल में उत्पन्न होने वाले सब प्रकार के पुष्प खिल उठे। वृक्षों के स्कन्धों में स्कन्ध-कमल, शाखाओं में शाखा-कमल, लताओं में लता-कमल पुष्पित हुए। स्थल पर शिला-तलों को चीर कर सात-सात दण्ड-कमल निकले। आकाश में अधर-कमल उत्पन्न हुए। सर्वत्र पुष्पों की वर्षा हुई। आकाश में दिव्य वाद्य बजे । चारों ओर सारी दस-सहस्री लोक-धातु (ब्रह्माण्ड) माला गुच्छ की तरह, दबाकर बंधे माला-समूह की तरह, सजे-सजाये माला-आसन की तरह, माला पंक्ति की तरह अथवा पुष्प-धूप-गंध से सुवासित खिली हुई चंवर की तरह परम शोभा को प्राप्त हुई।
बोधिसत्व के गर्भ में आने के समय से ही उनके और उनकी माता के उपद्रव निवारणार्थ चारों देवपुत्र हाथ में तलवार लिए पहरा देते थे । बोधिसत्त्व की माता को इसके अनन्तर पुरुष में राग-भाव उत्पन्न न हुआ। वह अतिशय लाभ और यश को प्राप्त हो, सुखी व अक्लान्त शरीर बनी रही। वह कुक्षिस्थ बोधिसत्त्व को सुन्दर मणि रत्न में पिरोये हुए पीले धागे की तरह देख सकती थी। बोधिसत्त्व जिस कुक्षि में वास करते हैं, वह चैत्य-गर्भ के समान दूसरे प्राणी के रहने या उपभोग करने योग्य नहीं रहती; अतएव जन्म के एक सप्ताह बाद ही माता की मृत्यु हो जाती है और वह तुषित् लोक में जन्म ग्रहण करती है। जिस प्रकार अन्य स्त्रियाँ दस मास से कम या अधिक बैठी या लेटी प्रसव करती हैं, बोधिसत्त्व की माता
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