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१३६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ से कोई पाप कार्य नहीं करूँगा, यह कहते हुए उन्होंने सामयिक चारित्र ग्रहण किया। सारा कलरव शान्त था और सहस्त्रों देवों व मनुष्यों के निनिमेष नेत्र उस स्वर्णिम दृश्य को देख रहे थे । उसी समय महावीर को मनःपर्यव ज्ञान प्राप्त हुआ। अभिग्रह
दीक्षित होते ही महावीर ने मित्र, ज्ञाति व सम्बन्धी वर्ग को विजित किया। एक उत्कट अभिग्रह धारण किया---'"बारह वर्ष तक व्युत्सृष्काय और (यक्तदेह (देह-शुश्रूषा से उपरत) होकर रहूंगा। इस अवधि में देव, मनुष्य व पशु-पक्षियों द्वारा जो भी उपसर्ग उपस्थित होंगे, उन्हें समभाव पूर्वक सहन करूंगा।"
बाद में ज्ञात-खण्ड उद्यान से विहार किया। उसी दिन सायंकाल एक मुहूर्त दिन शेष रहने पर वे कुमार ग्राम पहुँचे और ध्यानस्थ हो गये।
भगवान बुद्ध बोधिसत्त्व जब तुषित् लोक में थे, बुद्ध कोलाहल पैदा हुआ । लोकपाल देवताओं ने, सहस्त्र वर्ष बीतने पर लोक में सर्वज्ञ बुद्ध उत्पन्न होंगे, ऐसा जान कर मित्रों को सम्बोधित कर सर्वत्र घूमते हुए उच्च स्वर से घोषणा की..."अब से सहस्र वर्ष बीतने पर लोक में बुद्ध उत्पन्न होंगे।'' घोषणा से प्रेरित हो समस्त दस सहस्र चक्रवालों के देवता एकत्रित हुए। बुद्ध कौन होगा, यह जाना और उसके पूर्व लक्षणों को देखकर उसके पास गये व याचना की। जब उनके पूर्व लक्षण उदित हो गये तो चक्रवाल के सभी देवता- चतुर्महाराजिक, शक्र, सुयाम, संतुषित्, परनिर्मित-वशवर्ती-महाब्रह्माओं के साथ एक ही चक्रवाल में एकत्रित हुए और उन्होंने परस्पर मंत्रणा की। वे तुषित् लोक में बोधिसत्व के पास गये और उन्होंने प्रार्थना की— "मित्र ! तुमने जो दस पारमिताओं की पूर्ति की है, वह न तो इन्द्रासन पाने के लिए की है, न मार, ब्रह्मा या चक्रवर्ती का पद पाने के लिए, अपितु लोक-निस्तार व बुद्धत्व की इच्छा से ही उन्हें पूर्ण किया है। मित्र ! अब यह बुद्ध होने का समय है।" पाँच महाविलोकन
बोधिसत्त्व ने देवताओं को वचन दिये बिना ही अपने जन्म-सम्बन्धी समय, द्वीप, देश, कुल-माता तथा उसका आयु-परिमाण, इन पांच महाविलोकनों पर सविस्तार विचार किया। समय उचित है या नहीं, सर्वप्रथम यह चिन्तन किया। लाख वर्ष से अधिक की आयु का समय बुद्धों के जन्म के लिए उपयुक्त नहीं होता, क्योंकि उस समय प्राणियों को जन्म, जरा व मृत्यु का भान नहीं होता । बुद्धों का धर्मोपदेश अनित्य, दुःख तथा अनात्मभाव से रहित नहीं होता। उस समय इस उपदेश पर लोग ध्यान नहीं देते, उस पर श्रद्धा नहीं करते व नाना ऊहापोह करते हैं । उन्हें इसलिए धर्म का बोध नहीं हो सकता और ऐसा न होने पर बुद्धधर्म उनके लिए सहायक (नर्याणिक) नहीं होता; अतः वह समय अनुकूल नहीं है।
सौ वर्ष से कम आयु का समय भी अनुकूल नहीं होता, क्योंकि स्वल्पायुषी प्राणियों में राग-द्वेष की बहुलता होती है; अतः उन्हें दिया गया उपदेश भी प्रभावोत्पादक नहीं होता। पानी में लकड़ी से खींची गई रेखा की तरह वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है, अतः यह समय भी अनुकूल नहीं है।
लाख वर्ष से कम और सौ वर्ष से अधिक का समय अनुकूल होता हैं। प्रवर्तमान समय ऐसा ही है; अतः बुद्धों के जन्म के लिए उपयुक्त है।
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