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अध्ययन
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
महावीर जब कुछ अधिक आठ वर्ष के हुए तो माता-पिता ने शुभ मुहूर्त में अध्ययनार्थ विद्यालय भेजा । पंडित को उपहार में नारियल, बहुमूल्य वस्त्र व आभूषण दिये गये । विद्याथियों में खाने के स्वादु पदार्थ व अध्ययन में उपयोगी वस्तुएँ वितरित की गईं। पंडित ने महावीर के लिए विशेष आसन की व्यवस्था की ।
[ खण्ड : १
इन्द्र को सिद्धार्थ और त्रिशला की इस प्रवृत्ति पर विस्मय हुआ । तीन ज्ञान सम्पन्न महापुरुष को सामान्य जन पढ़ाये, यह उचित नहीं है । वह ब्राह्मण का रूप बनाकर वहाँ आया । महावीर से सभी विद्यार्थियों व पंडित की उपस्थिति में व्याकरण सम्बन्धी नाना दुरुह प्रश्न पूछे । महावीर ने अविलम्ब उनके उत्तर दिये । पंडित व विद्यार्थी चकित हो गये । उन प्रश्नो उत्तरों से पंडित की भी बहुत सारी शंकाएँ निर्मूल हो गईं। इन्द्र ने पंडित से कहा छात्र असाधारण है । सब शास्त्रों में पारंगत यह बालक महावीर है ।" पंडित को इस सूचना से हार्दिक प्रसन्नता हुई । इन्द्र ने महावीर के मुख से निःसृत उन उत्तरों को व्यवस्थित संकलित किया और उसे ऐन्द्र व्याकरण की संज्ञा दी ।
"यह
विवाह
सिद्धार्थ और त्रिशला ने यौवन में महावीर से विवाह का आग्रह किया । महावीर दाम्पतिक जीवन जीना नहीं चाहते थे, किन्तु, वे माता-पिता के आग्रह को टाल भी न सके । वसन्तपुर नगर के महासामन्त समरवीर व पद्मावती की कन्या यशोदा के साथ उनका पाणिग्रहण हुआ ।
उनके पारिवारिक जनों का परिचय भी आगमों में पर्याप्त रूप से मिलता है । उनके चाचा का नाम सुपार्श्व, अग्रज का नाम नन्दीवर्धन, बड़ी बहिन का नाम सुदर्शना, पुत्री का नाम प्रियदर्शना व अनवद्या तथा दामाद का नाम जमालि था । दोहित्री का नाम शेषवती व यशस्वती था ।
महावीर सहज विरक्त थे । उनका शरीर अत्यन्त कान्त व बलिष्ठ था । उनके लिए भोग - सामग्री सर्व सुलभ थी, पर, वे उसमें उदासीन व अनुत्सुक रहते थे । सिद्धार्थ और त्रिशला पावपित्यिक उपासक थे । उनका धर्मानुराग बड़ा उत्कट था । उन्होंने अनेक वर्षों तक श्रमणोपासक धर्म का पालन किया ! अपने अन्तिम समय में अहिंका की साधना के लिए पापों की आलोचना, निन्द्रा, गर्हा करते हुए प्रतिक्रमण व प्रायश्चित्त कर यावज्जीवन के लिए संथारा किया। वहाँ से आयु शेष कर वे अच्युत कल्प में उत्पन्न हुए ।
महावीर उस समय अटाईस वर्ष के थे । अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर उन्होंने अपने अज नन्दीवर्धन के समक्ष प्रवजित होने की भावना प्रस्तुत की । नन्दीवर्धन को इससे आवात लगा | माता-पिता के वियोग में अनुज का भी वियोग वह सहने में अक्षम था। उसके अनुरोध
१. वैजयन्ती कोष ( पृ० ८४७ ) में सामन्त का अर्थ पड़ोसी राजा किया है। कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी सामन्त शब्द का यही अर्थ उपलब्ध होता है । पड़ोसी राजाओं में भी जो प्रमुख होते थे, वे महासामन्त कहलाते थे ।
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२. दिगम्बर- परम्परा भगवान् महावीर का पाणिग्रहण तो नहीं मानती, पर, इतना अवश्य मानती है कि माता-पिता की ओर से उनके विवाह का वातावरण बनाया गया था । अनेक राजा अपनी-अपनी कन्याएं उन्हें देना चाहते थे । राजा जितशत्रु अपनी कन्या यशोदा का उनके साथ विवाह करने के लिए विशेष आग्रहशील था। पर, महावीर ने विवाह करना स्वीकार नहीं किया । - हरिवंश पुराण
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