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इतिहास और परम्परा]
जन्म और प्रव्रज्या बाल्य-जीवन
महावीर का बाल्य-काल एक राजकुमार की भाँति सुख-समृद्धि और आनन्द में बीता। उनके लालन-पालन के लिए पांच सुदक्ष धाइयाँ नियुक्त की गईं, जो उनके प्रत्येक कार्य को विधिवत् संचालित करती थीं। उन पाँचों के काम बँटे हुए थे--दूध पिलाना, स्नान कराना, वस्त्राभूषण पहनाना, क्रीड़ा कराना व गोद में लेना।
__ खेल-कूद में महावीर को विशेष रुचि नहीं थी; फिर भी अपने समवयस्कों के साथ वे यदा-कदा प्रमदवन (गृहोद्यान) में खेलते थे। एक बार जबकि उनकी अवस्था आठ वर्ष से कुछ कम थी, समवयस्कों के साथ संकुली (आमलकी) खेल रहे थे। इस खेल में किसी वृक्ष विशेष को लक्षित कर सभी बालक उसकी ओर दौड़ पड़ते। जो बालक सबसे पहले उस वृक्ष पर चढ़कर उतर आता, वह विजयी होता। पराजित बालकों के कंधों पर सवार होकर वह उस स्थान तक जाता, जहाँ से दौड़ आरम्भ होती थी। ___क्रीड़ारत महावीर को लक्ष्य कर एक बार शकेन्द्र ने देवों से कहा---'महावीर बालक होते हुए भी बड़े पराक्रमी व साहसी हैं। इन्द्र, देव, दानव,-कोई भी उनको पराजित नहीं कर सकता। एक देव को इन्द्र के इस कथन पर विश्वास न हुआ। परीक्षा के लिए, जहाँ महावीर खेल रहे थे, वह वहाँ आया। भयंकर सर्प बनकर पीपल के तने पर लिपट गया और फुफकारने लगा। महावीर उस समय पीपल पर चढ़े हुए थे। विकराल सर्प को देखकर सभी बालक डर गए। वर्द्धमान तनिक भी विचलित न हुए। उन्होंने दांये हाथ से सर्प को पकड़ कर एक ओर डाल दिया।
बालक फिर एकत्रित हुए और तिदूंसक खेल खेलने लगे। दो-दो बालकों के बीच वह खेल खेला जाता था। दोनों बालक लक्षित वृक्ष की ओर दौड़ पड़ते। जो बालक लक्षित वृक्ष को सबसे पहले छू लेता, वह विजयी होता। विजयी पराजित पर सवार होकर प्रस्थान-स्थान पर आता। वह देव बालक बनकर उस टोली में सम्मिलित हो गया। महावीर ने उसे पराजित कर वक्ष को छ लिया। नियमानुसार महावीर उस पर आरूढ होकर नियत स्थान पर आने लगे । देव ने उन्हें भीत करने व उनका अपहरण करने के लिए अपने शरीर को सात ताड़ प्रणाम ऊँचा और बहुत ही भयावह बना लिया। सभी बालक घबरा गए । कुछ चित्कार करने लगे व कुछ रोने लगे। महावीर अविचलित रहे । उन्होंने उसकी धूर्तता को भांप लिया और अपने पौरुष से उसके सिर व पीठ पर मुष्टिका का प्रहार किया। देव उस प्रहार को सह न सका । वह जमीन में धंसने लगा। उसने अपना वास्तविक रूप प्रकट किया और लज्जित होकर महावीर के चरणों में गिर पड़ा । बोला-"इन्द्र ने जैसी आपकी प्रशंसा की थी, आप उनसे भी अधिक धीर व वीर हैं।" देव अपने स्थान पर गया । इन्द्र स्वयं आया और उसने उनके वीरोचित कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
बल
महावीर के बल के बारे में माना जाता है-बारह योद्धाओं का बल एक वृषभ में, दस वृषभों का बल एक अश्व में, बारह अश्वों का बल एक महिष में, पन्द्रह महिषों का बल एक हाथी में, पाँच सौ हाथियों का बल एक केसरीसिंह में, दो हजार केसरीसिंह का बल एक अष्टा पद में, दस लाख अष्टापदों का बल एक बलदेव में, दो बलदेवों का बल एक वासुदेव में, दो बलदेवों का बल एक चक्रवर्ती में, एक लाख चक्रवतियों का बल एक नागेन्द्र में, एक करोड़ नागेन्द्रों का बल एक इन्द्र में और ऐसे अनन्त इन्द्रों के बल के सदृश बल तीर्थङ्करों की कनिष्ठ अंगुलि में होता है।
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