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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:१ चौसठ जल-कलश लेकर स्नात्राभिषेक को उद्यत हुए। सौधर्मेन्द्र मन-ही-मन आशंकित हुआ, एक बालक इतने जल-प्रवाह को कैसे सह सकेगा ?' ... महावीर ने इन्द्र की आशंका को अवधि ज्ञान से जान लिया। उसकी निवृति के लिए उन्होंने अपने बायें पाँव से मेरु पर्वत को थोड़ा-सा दबाया। वह कम्पित हो गया। इन्द्र ने कम्पन का कारण जानने के लिए अपने ज्ञान का प्रयोग किया। उसे महावीर की अनन्त शक्ति का अनुभव हुआ। तत्काल भगवान् से क्षमा याचना की। इन्द्र और देवों ने मिलकर जलाभिषेक किया। भगवान् की स्तुति की और उन्हें पुनः त्रिशला के पास लाकर लिटा दिया। प्रियंवदा दासी ने प्रातःकाल सिद्धार्थ को सर्वप्रथम इस शुभ संवाद से सूचित किया । सिद्धार्थ अत्यधिक प्रमुदित हुआ। उसने मुकुट के अतिरिक्त अपने शरीर पर पहने समस्त आभूषण उसे उपहार में दिए और जीवन-पर्यन्त उसे दासत्व से मुक्त कर दिया । आरक्षकों को अपने पास बुलाया और आदेश दिया- बन्दीगृह के समस्त कैदियों को मुक्त कर दो। ऋणीजनों को ऋण-मुक्त कर दो। बाजार में उद्घोषणा कर दो, वस्तु की आवश्यकता होने पर जो स्वयं न खरीद सकता हो, उसे बिना मूल्य लिये ही वह वस्तु दी जाये । उसका मूल्य राज-कोष से दिया जायेगा। माप और तोल कर दी जाने वाली वस्तुओं के माप में वृद्धि करा दो। नगर की सब ओर से सफाई करो। सुगन्धित जल से समस्त भू-भाग पर छिड़काव करो। देवालयों और राजमार्गों को सजाओ। बाजारों में व अन्य प्रमुख स्थानों पर मंच बंधवा दो ताकि नागरिक सुखासीन होकर महोत्सव देख सकें। दीवारों पर सफेदी कराओ और उन पर थापे लगवाओ। नगर के समस्त नट-नाटक करने वालों. नट्टग -नाचने वालों, जल्लरस्सी पर खेलने वालों, मल्ल-मल्लों, मटिठ-मष्टि-युद्ध करने वालों, विडम्बक-विदूषकों, पवग-बन्दर के समान उछल-कूद करने वालों, गड्ढे फांदने वालों व नदी में तैरने वालों, कहगा--कथा-वाचकों, पाठग-सूक्ति पाठकों, लासग–रास करने वालों, लेख-बांस पर चढ़कर खेल करने वालों, मंख-हाथ में चित्र लेकर भिक्षा मांगने वालों, तूण इल्ल - तूणनामक वाद्य बजाने वालों, तुम्ब-वीणिका-वीणा-वादकों, मदंग-वादकों व तालाचरा-तालियां बजाने वालों को सज्ज करो और उन्हें त्रिक, चतुष्पथ व चच्चर आदि में अपनी उत्कृष्ट कलाबाजियां दिखाने का निर्देश दो। सभी सम्बन्धित अधिकारी और कर्मचारी उन कामों में जुट गये। सिद्धार्थ व्यायाम शाला में आया । नियमपूर्वक अपनी दैनिक चर्या सम्पन्न की। स्नान किया और वस्त्राभूषणों से सज्जित होकर राज-सभा में आया। आनन्द-विनोद के साथ दस दिन तक स्थितिपतित नामक महोत्सव मनाने का निर्देश किया। तीसरे दिन महावीर को चन्द्र-सूर्य-दर्शन कराये गए। छठे दिन रात्रि-जागरण हुआ। बारहवें दिन नाम-संस्कार किया गया। उस दिन सिद्धार्थ ने अपने इष्ट मित्रों, स्वजनों, स्नेहियों व भृत्यों को आमंत्रित कर भोजन-पानी, अलंकार आदि से सबको सत्कृत किया। आगन्तुक अतिथियों को सम्बोधित करते हुए उसने कहा- "जब से यह बालक गर्भ में आया है, धन-धान्य, कोश, कोष्ठागार, बल स्वजन और राज्य में अतिशय वृद्धि हुई है ; अतः इसका नाम 'वर्द्धमान' रखा जाए।" सिद्धार्थ का यह प्रस्ताव सभी को भा गया। महावीर का सर्वप्रथम वर्द्धमान नामकरण हुआ। जब वे साधना में प्रवृत्त हुए और दुःसह, मारणान्तिक व महादारुण परिषहों में अविचलित रहे तो देवों ने उनका महावीर नामकरण किया, जो अति विश्रुत हुआ। १. कप्प, कल्पलता व्याख्या, पत्र संख्या १०८-२, १०६-१ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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