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________________ इतिहास और परम्परा ] वयः प्राप्त व अनुभव प्राप्त महिलाओं की शिक्षा का स्मरण करती हुई, गर्भ-संरक्षण के लिए वह मन्द मन्द चलती, शनैः-शनैः बोलती, क्रोध व अट्टहास न करती, पथ्य वस्तुओं का सेवन करती, कटि-बन्धन शिथिल रखती थी, उच्चावच भूमि में परिव्रजन करती हुई सम्भल कर रहती तथा खुले आकाश में न बैठती । महावीर जब से गर्भ में आये, सिद्धार्थ के घर धन-धान्य की विपुल वृद्धि होने लगी । शकेन्द्र के आदेश से वैश्रवण जृम्भक देवों के द्वारा भूमिगत धन-भण्डार, बिना स्वामी का धनभण्डार, बिना संरक्षण का धन भण्डार, अपितु ऐसा भूमिगत धन भण्डार भी, जो किसी के लिए भी ज्ञात नहीं है तथा ग्राम, नगर, अरण्य, मार्ग, जलाशय, तीर्थ-स्थान, उद्यान, शून्यागार, गिरिकन्दरा आदि में संगोपित धन-भण्डार आदि को वहाँ वहाँ से उठाकर सिद्धार्थ के घर पहुंचाने लगा। राज्य में धन-धान्य, यान- वाहन आदि की प्रचुर वृद्धि हुई । दोहद जन्म और प्रव्रज्या कप्पसुत्त की कल्पलता व्याख्या के अनुसार त्रिशला को इन्द्राणियों से छीनकर उनके कुण्डल पहनने का दोहद उत्पन्न हुआ । किन्तु, ऐसा हो पाना सर्वथा असम्भव था; अतः वह दुर्मनस्क रहने लगी । सहसा इन्द्र का आसन कम्पित हुआ । अवधि- ज्ञान के बल से उसने यह सब कुछ जाना । इसे पूर्ण करने के उद्देश्य से उसने इन्द्राणी प्रभृति अप्सराओं को साथ लिया और एक दुर्गम पर्वत के अन्तर्वर्ती विषम स्थान में देव नगर का निर्माण कर रहने लगा । सिद्धार्थ ने जब यह जाना, ससैन्य इन्द्र के पास आया और उससे कुण्डलों की याचना की । इन्द्र ने उसे देने से मना किया। दोनों ही पक्ष युद्ध के लिए सज्ज हुए । इन्द्र युद्ध में समर्थ था, फिर भी कुछ समय लड़कर वहां से भाग निकला। सिद्धार्थ ने अप्सराओं को लूट लिया । बिलखति हुई इन्द्राणियों के हाथों से बलपूर्वक राजा ने कुण्डल छीने और त्रिशला को लाकर दिये । रानी ने उन्हें पहन कर अपना दोहद पूर्ण किया । I १३१ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की मध्य रात्रि में नव मास साढ़े सात अहोरात्र की गर्भ-स्थिति का परिपाक हुआ । महावीर ने पूर्ण आरोग्य के साथ जन्म लिया । वे देवताओं की तरह जरायु, रुधिर व मल से रहित थें। उस दिन सातों ग्रह उच्च स्थान-स्थित थे और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग था । अत्यन्त आश्चर्यकारक प्रकाश से सारा संसार जगमगा उठा । आकाश में गम्भीर घोष से दुन्दुभि बजने लगी । नारक जीवों ने अभूतपूर्व सुख की साँस ली । सब दिशाएँ शान्त एवं विशुद्ध थीं । शकुन जय-विजय के सूचक थे । धायु अनुकूल व मन्द मन्द चल रही थी । बादलों से सुगंधित जल की वर्षा हो रही थी । भूमि शस्यश्यामला हो रही थी । सारा देश आनन्दमग्न था । जन्मोत्सव Jain Education International 2010_05 जन्म के समय छप्पन दिक् कुमारियाँ आईं और उन्होंने सूतिकर्म किया । सौधर्म देवलोक के इन्द्र का आसन कम्पित हुआ । अवधि ज्ञान से उसे ज्ञात हुआ कि चरम तीर्थङ्कर महावीर का जन्म हुआ है । अत्यन्त आह्लादित वह अपने पूरे परिवार के साथ क्षत्रियकुण्डपुर की ओर चला । उसके साथ भुवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक - चारों निकाय के देव और उनके इन्द्र भी थे। सभी देव अहंप्रथमिका से सिद्धार्थ के राज-महलों में पहुँचने के लिए प्रयत्नशील थे । इन्द्र ने महावीर और त्रिशला की तीन प्रदक्षिणा की और उन्हें प्रणाम किया । महावीर का एक प्रतिबिम्ब बनाकर माता के पास रखा। अवस्वापिनी निन्द्रा में माता को सुलाकर महावीर को मेरु पर्वत के शिखर पर ले गए। वहाँ सभी देव आठ प्रकार के आठ हजार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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