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________________ १२८ आगम और एक त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ ऋतु के चतुर्थ मास, अष्टम पक्ष आषाढ़ शुक्ला षष्ठी के दिन हस्तोत्तर नक्षत्र का योग आने पर प्राणत नामक दश स्वर्ग के पुण्डरीक नामक महाविमान से बीस सागरोपम प्रमाण देव आयुष्य को पूर्ण कर वहाँ से च्युत हुए। देवानन्दा की कुक्षि में जम्बद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र में दक्षिण ब्राह्मणकुण्ड सन्निवेश में कोडाल गोत्रीय ऋषभदत्त की जालंधर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में अवतरित हुए । क्षण भर के लिये प्राणी-मात्र के दुःख का अच्छेद हो गया। तीनों ही लोक में सुख और प्रकाश फैल गया। । उस समय भगवान् महावीर मति, श्रुत और अवधि-इन तीन ज्ञान के धारक थे। इस देवगति से मुझे च्युत होना है, यह उन्होंने जाना। च्युत होकर मैं देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में पहुंच चुका हूं, यह भी उन्होंने जाना, किन्तु च्यवन-काल को उन्होंने नहीं जाना, क्योंकि वह अत्यन्त सूक्ष्म होता है। देवों का आयुष्य जब छः मास अवशिष्ट रहता है, तब उनकी माला मुरझा जाती है, कल्प वृक्ष कम्पित होने लगता है, श्री और ही का नाश हो जाता है, वस्त्रों का उपराग होने लगता है, दीनता छा जाती है, नींद उड़ जाती है, कामना समाप्त हो जाती है, शरीर टूटने लगता है, दृष्टि में भ्रान्ति हो जाती है, कम्पन होने लगता है और चिन्ता में ही समय व्यतीत होता है। किन्तु, महावीर इसके अपवाद थे। उनके साथ उपर्युक्त बारह प्रकार नहीं हुए। यह उनका अतिशय था। गर्भाधान के समय देवानन्दा ने अर्धनिद्रित अवस्था में चौदह स्वप्न देखे। तत्काल प्रसन्नमना उठी और उसने ऋषभदत्त को सारा स्वप्न-वृत्त सुनाया। ऋषभदत्त भी बहुत हर्षित हुआ। उसने कहा -- “सुभगे ! ये स्वप्न विलक्षण हैं। कल्याण व शिव रूप हैं। मंगलमय हैं । आरोग्यदायक व मंगल कारक हैं । इन स्वप्नों के परिणाम स्वरूप तुझे अर्थ, भोग, पुत्र और सुख का लाभ होगा। नव मास और साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर तू एक अलौकिक पुत्र को जन्म देगी। उस पुत्र के हाथ-पांव बड़े सुकुमार होंगे। वह पांचों इन्द्रियों से प्रतिपूर्ण व सांगोपांग होगा। उसका शरीर सुगठित और सर्वांग सुन्दर होगा। विशिष्ट लक्षण, व्यंजन व गुण-सम्पन्न होगा। वह चन्द्र के सदृश्य सौम्य और सबको प्रिय, कान्त व मनोज्ञ होगा। ____ "शैशव की देहली को पार कर जब वह यौवन में प्रविष्ट होगा, उसका ज्ञान बहुत विस्तृत हो जायेगा। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद सामवेद व अथर्ववेद, इतिहास तथा निघण्टु का सांगोपांग ज्ञाता होगा । उनके सूक्ष्मतम रहस्यों को विविक्त करेगा। वेदो के विस्मृत हार्द का पुनः जागरण करेगा। वेद के षडंगों व सष्टि तंत्र (कापिलीय) शास्त्र में निष्णात होगा। गणित शास्त्र, ज्योतिष, व्याकरण, ब्राह्मण शास्त्र, परिव्राजक शास्त्र आदि में भी धुरंधर होगा।" गर्भ-संहरण अवधि ज्ञान से महावीर के गर्भावतरण की घटना जब इन्द्र को ज्ञात हुई तो सहसा विचार आया-तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, आदि शूद्र, अधम, तुच्छ, अल्प कौटु,म्बिक, निर्धन, कृपण, भिक्षक या ब्राह्मण कूल में अवतरित नहीं होते। वे तो राजन्य कुल में ज्ञात, क्षत्रिय, इक्ष्वाकु, हरि आदि वंशों में ही अवतरित होते है। तत्काल हरिणगमेषी देव १. आचारांग, श्रुत०२, अ० १५, पत्र सं० ३८८-१ । २. कल्पसूत्र, १७-१८ । ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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