________________
भगवान् महावीर की मौलिक जीवन-गाथा श्वेताम्बर परम्परा में आयारंग और कष्पइन दो आगमों में मिलती है । टीका, चूर्णि, नियुक्ति और काव्य ग्रंथों में वह पल्लवित होती रही है । भगवान् बुद्ध का प्रारम्भिक जीवन-वृत मुख्यतः जातक में मिलता है । वैसे तो समग्र आगम व त्रिपिटक ही दोनों की जीवन-गाथा के पूरक हैं, पर, जीवन-चरित की शैली में उनकी यत्किञ्चित् जीवन-गाथा उक्त स्थलों में ही विशेषतः उपलब्ध है । दोनों युगपुरुषों के जन्म व दीक्षा के वर्णन परस्पर समान भी हैं और असमान भी । वे समानताएँ और असमानताएँ जैन और बौद्ध संस्कृतियों के व्यवधान को समझने में बहुत महत्वपूर्ण हैं । इसके अतिरिक्त उन वर्णनों से तत्कालीन लोक धारणाओं, सामाजिक प्रथाओं और धार्मिक परम्पराओं पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है ।
६
जन्म और प्रव्रज्या
महावीर और बुद्ध दोनों ही अपने प्राग्-भव के अन्तिम भाग में अपने अग्रिम जन्म को सोच लेते हैं । दोनों के सोचने में अन्तर केवल यह है कि महावीर सोचते हैं, मेरा जन्म कहाँ होने वाला है और बुद्ध सोचते हैं, मुझे कहाँ जन्म लेना चाहिए ।
बुद्ध ने अपने उत्पत्ति-काल के विषय में सोचा, मुझे उस समय जन्म लेना चाहिए, जब मनुष्यों का आयुमान सौ वर्ष से अधिक और लाख वर्ष से कम हो । वही समय नैर्याणिक (निर्वाणोचित) होता है । जैन परम्परा में भी भरत क्षेत्र में तीर्थङ्करों का उत्पत्ति-काल वही माना गया है, जब मनुष्य मध्य आयु वाले होते हैं ।
महावीर का जम्बूद्वीप एक लाख योजन का है और बुद्ध का जम्बूद्वीप दस हजार योजन का । महावीर जम्बूद्वीप के दक्षिण भारत में उत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर में जन्म लेते हैं और बुद्ध जम्बूद्वीप के मध्य देश में कपिलवस्तु नगर में जन्म लेते हैं । दोनों ही भू-भाग बहुत समीपवर्ती हैं । केवल अभिधाएँ भिन्न-भिन्न हैं ।
महावीर ब्राह्मण कुल में देवानन्दा के गर्भ में आते हैं । इन्द्र सोचता है - " अरिहन्त क्षत्रिय कुल को छोड़ ब्राह्मण, वैश्य व शूद्र, इन कुलों में न कभी उत्पन्न हुए, न कभी होंगे । मुझ 'देवानन्दा का गर्भ हरण कर भगवान् को त्रिशला क्षत्रियाणी के उदर में स्थापित करना चाहिए । 'इन्द्र की आज्ञा से हरिणैगमेषी देव वैसा कर देता है । बुद्ध स्वयं सोचते हैं, बुद्ध ब्राह्मण और क्षत्रिय कुल में ही जन्म लेते है, वैश्य और शूद्र कुल में नहीं; अतः मुझे क्षत्रिय कुल में ही जन्म लेना है । इन्द्र ने केवल क्षत्रिय कुल में ही तीर्थङ्कर का उत्पन्न होना माना है और बुद्ध ने क्षत्रिय और ब्राह्मण -- इन दो कुलों में बुद्ध का उत्पन्न होना ।
१. गर्भ-हरण का प्रसंग दिगम्बर परम्परा में अभिमत नहीं है ।
ܐܕܙ
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org