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इतिहास और परम्परा
पूर्व भव
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उक्त प्रकरणों में भव-भ्रमण का प्रकार, आयु की दीर्घता आदि अनेक विषय अन्वेषणीय बन जाते हैं। तीर्थङ्क रत्व प्राप्ति के लिए बीस निमित्त और बुद्धत्व-प्राप्ति के लिए दश पारमितायें अपेक्षित मानी गई हैं । उन निमित्तों और पारमिताओं के हार्द में बहुत कुछ समानता
बीस निमित्त
दश पारमितायें १. अरिहन्त की आराधना
१. दान २. सिद्ध की आराधना
२. शील ३. प्रवचन की आराधना
३. नैष्क्रम्य ४. गुरु का विनय
४. प्रज्ञा ५. स्थविर का विनय
५. वीर्य ६. बहुश्रुत का विनय
६. क्षान्ति ७. तपस्वी का विनय
७. सत्य ८. अभीक्षण ज्ञानोपयोग
८. अधिष्ठान ६. निर्मल सम्यगदर्शन
६. मैत्री १०. विनय
१०. उपेक्षा ११. षड् आवश्यक का विधिवत् समाचरण १२. ब्रह्मचर्य का निरतिचार पालन १३. ध्यान १४. तपश्चर्या १५. पात्र-दान १६. वैयावृत्ति १७. समाधि-दान १८. अपूर्व ज्ञानाभ्यास १६. श्रुत-भक्ति २०. प्रवचन-प्रभावना
बीस निमित्तों और दश पारमिताओं के भावनात्मक साम्य के साथ-साथ एक मौलिक अन्तर भी है। बुद्ध बुद्धत्व-प्राप्ति के लिए कृत संकल्प होते हैं और सारी क्रियाएँ बुद्धत्व-प्राप्ति १. इमेहि य णं वीसाएहि य कारणेहिं आसेविय बहुली--कएहि तित्थयरनामगोयं कम्म निवत्तिसु तं जहा
अरहंत सिद्ध पवयण गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सीखें। वच्छल्लया य तेसिं अभिक्खणाणोवओगे य ॥१॥ दसण विणय आवस्सए य सीलव्वए णिरइयारं। खणलव तब च्चियाए वेयावच्चे समाही य॥ २॥ अपुव्वणाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पभावणया । एएहिं कारणेहिं त्तित्थयरत्तं लहइ जीओ ॥३॥
---णायाधम्मकहाओ, अ० ८, सू० ७० । २. बौद्ध धर्म दर्शन, पृ० १८१-१८२; जातक, प्रथम खण्ड, पृ० ११०-१३१ ।
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