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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड : १ ४. बुद्ध का निर्वाण : ईत्झाना' संवत् के १४८वें वर्ष में, काटसन (वैसाख) मास में
पूर्णिमा के दिन मंगलवार को, जब चन्द्रमा का विशाखा नक्षत्र के साथ योग
था। बर्मी-परम्परा के अनुसार ईत्झाना संवत् का प्रारम्भ तगू' (चैत्र)मास में कृष्णा प्रथमा के दिन रविवार को होता है।
इस बर्मी काल-क्रम को एम० गोविन्द पै ने ईस्वी सन् काल-क्रम में इस प्रकार वाला है : १. जन्म:
ई० पू० ५८१, मार्च ३०, शुक्रवार । २. गृहत्याग :
ई० पू० ५५३, जून १८, सोमवार । ३. बोधि-प्राप्ति:
ई०पू० ५४६, अप्रैल ३, बुधवार । ४. निर्वाण :
ई० पू० ५०१, अप्रैल १५, मंगलवार । ५. ईत्झाना संवत् का प्रारम्भ : ई०पू०६४८, फरवरी १७, रविवार। इस प्रकार भगवान बुद्ध के जन्म, गृह-त्याग, बोधि और निर्वाण के सम्बन्ध से हम जिस काल-क्रम पर पहुँचे हैं, बर्मी-परम्परा उस काल-क्रम का पूर्णतः समर्थन कर देती है। तथ्य की पुष्टि में यह एक अनोखा संयोग कहा जा सकता है और वह इसलिए कि अपने निष्कर्षों पर पहुँचने तक बर्मी परम्परा की ये धारणाएँ लेखक के सामने नहीं थीं। इन बर्मी परम्पराओं का साक्षात् लेखक को तब होता है, जब यह पूरा प्रकरण लेखमाला के रूप में 'जैन भारती' आदि पत्रिकाओं में निकल चुकता है।
इससे यह भी प्रमाणित हो जाता है कि निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए हमने जिन कल्पनाओं का सहारा लिया था, वे कल्पनाएँ ही नहीं, वस्तुस्थिति तक पहुंचाने की यथार्थ पगडंडियाँ ही थीं।
कुल मिलाकर उक्त चारों ही प्रमाण विभिन्न दिशाओं से चलने वाले पथिकों की तरह एक ही ध्रुव-बिन्दु पर पहुँचकर उस ध्रुव-बिन्दु की सत्यता के प्रमाण बन गये हैं।
१. Ibid, voll. II, P. 69 २. 'तगू' बर्मी भाषा में 'चैत्र' मास का पर्यायवाची शब्द है। ३. Bigandet Life Gaudama vol. I p. 13. 8. Prabuddha Karnntaka Kannada Quarterly published by the
Mysore University, vol XXVII (1945-46), No I, pp. 92-93, The Date of Nirwana of Lord Mahavira in "Mahabvira Commemoration Volume, pp. 93-94"
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