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________________ ११६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ पर वर्तमान इतिहासकारों की दृष्टि में यह अभिमत अर्द्धमान्य-सा हो रहा है। उनका कहना है कि यह तो ठीक है कि वह शिलालेख सम्राट अशोक की धर्म-यात्रा के २५६ वें पड़ाव या २५६ वें दिन को लिखा गया था, पर वह भगवान् बुद्ध की २५६ वीं निर्वाण-जयन्ती के उपलक्ष में लिखा गया, यह यथार्थ नहीं लगता है; क्योंकि अशोक के काल (ई० पू० २७३२३६) के साथ बुद्ध-निर्वाण के २५६ वर्षों की, उनकी प्रचलित किसी भी निर्वाण-तिथि के आधार पर संगति नहीं बैठती। किन्तु डॉ० मैक्स म्यूलर ने इतिहासकारों के इस अभिमत की स्पष्टतया आलोचना की है और डॉ० ब्यूलर के मत का समर्थन किया है। 'सेक्रेड बुक्स ऑफ वी ईस्ट' के अन्तर्गत खण्ड १०, धम्मपद की भूमिका में उन्होंने लिखा है : "इन शिलालेखों (लघु शिलालेख नं०१ और २) की शब्दाबलि से सम्बन्धित कठिनाइयों को मैं पूर्ण रूप से स्वीकार करता हूँ; किन्तु फिर भी मैं पूछता हूँ कि ये शिलालेख अशोक ने नहीं खुदवाये तो किसने खुदवाये? और यदि अशोक ने ही खुदवाये, तो उसमें रही हुई तारीख बुद्ध-निर्वाण के २५६ वर्ष के अतिरिक्त और क्या अर्थ रख सकती है ? डॉ० ब्यूलर ने अपनी दूसरी विज्ञप्ति में' इन दृष्टिबिन्दुओं के विषय में इतनी विद्वतापूर्ण तक रखी हैं कि मुझे डर लगता है, मैं और कुछ अधिक लिख कर सम्भवतः उनके पक्ष को कहीं निर्बल न बना दूं। अत: मेरे पाठकों को मेरे विचार जानने के लिए उन्हीं (डॉ० ब्यूलर) की दूसरी विज्ञप्ति' देखने का सुझाव देता हूँ।" इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय और महत्त्व की बात यह है कि प्रस्तुत पुस्तक में ई०पू० ५०२ के जिस बुद्ध-निर्वाण-काल पर हम पहुंचे हैं, वह इन शिलालेखों के उक्त कथन के साथ पूर्णतया संगत होता है । यह तो स्पष्ट हो ही चुका है कि उक्त शिलालेख सम्राट अशोक के 'संघ उपेत' होने के कुछ अधिक एक वर्ष पश्चात् लिखे गये हैं और अशोक अपने राज्याभिषेक के २० वर्ष पश्चात् ‘संघ-उपेत' होता है। यहां हम काल-गणना के एक निश्चित् बिन्दु पर पहुँच जाते हैं, जो कि सर्वमान्य और निर्विवाद है। वह है-ई० पू० २६६ में अशोक का राज्याभिषेक । निष्कर्ष हुआ १. उदाहरणार्थ देखें, Dr. Vincent A. Smith, Asoka, p. 150; Dr. H.C. Ray Chaudhuri, Political History of Ancient India, p. 341 n; यदुनन्दन कपूर, अशोक पृ० १२८ । P. I fully admit the difficulties in the phraseology of these inscrip tions but I ask, who could have written these inscriptions, if not Ashoka? And how if written by Ashoka, can the date which they contain mean anything but 256 years after Buddha's Nirvana ? These points however, have been argued in so masterly a manner by Dr. Buhiar in his "Second Notice" that I should be afraid of weakening his case by adding anything of my own and must refer my readers to his "Second Notice". —Max Muler, S. B. E., vol. X, (Part I), Dhammapada, introduction, p, XII. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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