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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
उन सभी स्थलों की यात्रा करना चाहता हूं, जहाँ भगवान् बुद्ध ठहरे थे। ऐसा करके मैं उन स्थानों का आदर करना चाहता हूँ तथा चिरकाल तक के लोगों को शिक्षा मिले, ऐसे स्थाई स्मृति-स्तम्भ के द्वारा उनको उत्कीर्ण करना चाहता हूँ।' गुरुजी ने इस योजना की अनुमति दी और यात्रा में मार्ग-दर्शक बनना स्वीकार कर लिया। विशाल सेना सहित सम्राट ने क्रमश: सभी तीर्थ-स्थानों की यात्रा की।
“सर्व प्रथम लुम्बिनी उद्यान की यात्रा की गई। यहां (गुरु) उपगुप्त ने कहा : 'महाराज ! यहाँ भगवान बद्ध जन्मे थे।' और आगे कहा : 'जिसके दर्शन ही मनोहर हैं, ऐसे भगवान बद्ध के समादर में यहां प्रथम स्मति-स्तम्भ खड़ा किया जाता है। यहाँ जन्म के अनन्तर ही श्रमण गौतम ने भूमि पर सात कदम भरे थे।"
"राजा ने उस स्थान के लोगों को एक लाख स्वर्ण मुद्रा प्रदान की और स्तूप बनवाया। तत्पश्चात् वे कपिलवस्तु गये।
"बाद में उस राजयात्री ने बोध गया स्थित बोधि-वृक्ष के दर्शन किये और एक लाख स्वर्ण मुद्राओं की भेंट चढ़ाई तथा चैत्य बंधवाया। बनारस के समीप आये हुए ऋषिपतन, जहाँ गौतम बुद्ध ने 'धर्मचक्र' का प्रवर्तन किया था और कुशीनारा, जहाँ तथागत निर्वाण को प्राप्त हुए थे, भी राजा ने देखे तथा उसी प्रकार की भेंट चढ़ाई। श्रावस्ती में तीर्थ-यात्रियों ने जेतवन विहार के दर्शन किये, जहाँ गौतम ने दीर्घकाल के लिए निवास किया था और उपदेश दिया था तथा वहीं पर बुद्ध के शिष्य सारिपुत्र, मौद्गल्यायन व महाकश्यप के
the moment after his birth, the recluse took seven steps upon the ground.''
The king bestowed a hundred thousand gold pieces on the people of the place, and built a STUP A. He then passed on to Kapilvastu. The royal pilgrim next yisited the Bodhi-tree at Bodh Gaya, and there also gave largess of a hundred thousand gold-pieces, and built a CHAITYA. Rishipatana (Sarnath) near Benares, where Gautama had turned the wheel of the law, and Kusina gar, where the teacher had passed away, were also visited with similar observances. At Sravasti, the pilgrims did reverence to the Jetavana monastery, where Gautama had so long dwelt and taught, and to the Stupas of his disciples, Sariputra, Maudgalayana and Mabakasyapa. But when the king visited the STUPA of Vakkula, he gave only one copper coin, insmuch as Vakkula had met with few obstacles in the path of holiness and had done little good to his fellow creatures. At the STUPA of Ananda, the faithful attendant of Gautama, the royal gift amounted to six million gold pieces."
-Ashokavadana, Translated by Dr. Vincent A. Smith. 'The
Pilgrimage of Asoka' in Asoka (The Rulers of India), pp. 227-228
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