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इतिहास और परम्परा]
काल-निर्णय हैं। कुछ कहते हैं कि जिस समय अशोक साधू-पर्याय में रहा, उस समय उसने सम्राट पद छोड दिया होगा, क्योंकि भिक्षु-जीवन का राजकीय कर्तव्यों के साथ पालन होना सम्भव नहीं है। अन्य विद्वानों का कहना है कि बहुत सारे राजाओं के ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जो साथ-साथ साधु भी थे ; अत: यह कल्पना करने की कोई आवश्यकता नहीं है कि अशोक ने कुछ काल के लिए भी गद्दी का त्याग कर दिया हो।
___संघे उपेते शब्दों का जो कुछ भी अर्थ लगाया जाये, इतना तो असंदिग्धतया कहा जा सकता है कि जब से अशोक 'संघ उपेत' हुआ, तबसे उसने बौद्ध धर्म या उसके प्रचारार्थ अदम्य उत्साह दिखाया । न केवल उसने इन सिद्धान्तों के प्रसार के लिए भारत में तथा विदेशों में उपदेशकों के समूह-के-समूह भेजे, अपितु उसने स्वयं इस हेतु से यात्राएँ की तथा इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए अन्य अनेक प्रयत्न किये।"
डॉ० मुखर्जी ने अपने विवेचन में संघे उपेते' शब्द के किसी एक ही अर्थ-विशेष पर बल नहीं दिया है, पर उन सारे अर्थ-भेदों पर दृष्टिपात करने से यह सहज ही समझ में आता है कि अशोक के संघ उपेत' होने का सम्बन्ध उसकी ऐतिहासिक धर्म-यात्रा से ही होना चाहिए, जिसका उल्लेख अशोक के रुम्मिनदेई स्तम्भ लेख में स्पष्ट-स्पष्ट मिलता है। इस अभिलेख में बताया गया है : "देवान पियेन पियवसिन लाजिना वीसातिवसाभिसितेन अतन अगाच महीयिते। हिद बुधे जाते सक्य मुनीति सिल-बिगडभीचा कालापित सिलाथमे च उसपापिते हिव भगवं जाते ति लुमिनिगामे उवलिके कटे अठभागिये च।"
"देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने राज्याभिषेक के २० वर्ष बाद स्वयं आकर (इस स्थान की) पूजा की। यहाँ शाक्य मुनि बुद्ध का जन्म हुआ था, इसलिए यहाँ पत्थर की एक प्राचीर स्थापित की गई है और पत्थर का एक स्तम्म खड़ा किया गया। वहाँ भगवान् जन्मे थे, इसलिए लुंबिनी ग्राम का कर उठा दिया गया और (पैदावार का) आठवां भाग भी (जो राजा का हक था) उसी ग्राम को दे दिया गया।"
___ इसके अतिरिक्त अशोकावदान ग्रन्थ में उक्त यात्रा का जिस प्रकार वर्णन मिलता है, उससे भी 'संघ उपेत' शब्द इस यात्रा के साथ ही अधिक संगत बैठता है। अशोक की यात्रा के सम्बन्ध में वहाँ बताया गया है :२ "राजा (अशोक) ने (अपने गुरु उप्तगुप्त से) कहा : 'मैं
१. जनार्दन भट्ट, अशोक के धर्मलेख । १२. The king said : "I desire to visit all the places where the vener
able Bnddha stayed, to do honour unto them, and to mark each with an enduring memorial for the instruction of the most remote posterity.' The saint approved of the project, and uudertook to act as a guide. Escorted by a mighty army, the monarch visited all the holy places in order.
The first place visited was the Lumbini Garden. Here Upagupta said: "In this spot, great king, the venerable one was born," and added : "Here is the first monument consecrated in honour of the Buddha, the sight of whom is excellent. Here,
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