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मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ के हमारे चिन्तन में कोई मौलिक भूल रही है । वह है-बौद्ध काल-गणना का आधार । बुद्ध के जन्म और निर्वाण के काल-निर्धारण में बौद्ध काल-गणना काही आधार मुख्यतया माना जाता रहा है। यही कारण हो सकता है कि उनके जीवन-संस्मरणों व काल-क्रम में पर्याप्त संगति नहीं बैठ रही है।
महावीर और बुद्ध की समसामयिकता
ऐसी स्थिति में जब कि बुद्ध के जन्म और निर्वाण का काल-क्रम स्वयं में संदिग्ध और अनिश्चित ही ठहरता है, महावीर और उनकी समसायिकता को पकड़ने के लिए, उनके जीवन-प्रसंग ही आधारभूत प्रमाण बन जाते हैं । बुद्ध के समय में उनके सहित सात धर्मनायक थे । बुद्ध का सम्बन्ध उन सब में अच्छा या बुरा महावीर के साथ सबसे अधिक रहा है, यह त्रिपिटक स्वयं बतला रहे हैं। अतः महावीर और बुद्ध के जीवन-प्रसंगों की संगति बुद्ध के निर्वाण-काल को समझने में सहायक हो सकती है। __ आगमों और त्रिपिटकों के अंचल में निम्न चार निष्कर्ष सुस्पष्ट हैं :
१. बुद्ध महावीर से आयु में छोटे थे अर्थात् महावीर जब प्रौढ़ (अधेड़) थे, तब बद्ध युवा थे।
२. बुद्ध को बोधि-लाभ होने से पूर्व ही महावीर को कैवल्य-लाभ हो चुका था और वे धर्मोपदेश की दिशा में बहुत कुछ कर चुके थे।
३. गोशालक का शरीरान्त महावीर के निर्वाण से १६ वर्ष पूर्व हुआ अर्थात् उस समय महावीर ५६ वर्ष के थे।
४. गोशालक की वर्तमानता में बुद्ध बोधि-प्राप्त कर चुके थे तथा महाशिलाकंटक व रथमुशल संग्राम के समय महावीर, बुद्ध और गोशालक-तीनों ही विद्यमान थ।
गोशालक की मृत्यु के समय महावीर ५६ वर्ष के थे और बोधि-प्राप्त बुद्ध उस समय कम-से-कम ३५ वर्ष के तो होते ही हैं। ७२ वर्ष की आयु में महावीर का निर्वाण हुआ। उस समय बुद्ध की अवस्था कम-से-कम ५१ वर्ष की तो हो ही जाती है । बुद्ध की समग्न आयु ८० वर्ष होती है। इस प्रकार महावीर-निर्वाण के अधिक-से-अधिक २६ वर्ष बाद उनका निर्वाण होता है।
यह तो दोनों के निर्वाण-काल में अधिक-से-अधिक अन्तर की सम्भावना हुई । अब
१. पूरण कस्यप आदि छहों ही तीर्थङ्कर बुद्ध के बोधि-प्राप्ति से पहले ही अपने को
तीर्थङ्कर घोषित कर धर्म प्रचार करते थे व बुद्ध की बोधि-प्राप्ति के समय सभी विद्यमान थे। जिस समय बुद्ध को बोधि-प्राप्ति हुई, उस समय उनको गया में सारनाथ जाते हुए रास्ते में एक उपक नामक आजीवक साधु मिला था। बुद्ध ने उसे कहा था-'मुझे तत्त्व-बोध हुआ है। परन्तु उपक को उस सम्बन्ध में विश्वास नहीं हुआ। 'होगा शायद' कहकर वह दूसरे मार्ग से चलता बना(देखें, विनय पिटक, महावग्ग १; धर्मानन्द कोसम्बी, भगवान् बुद्ध, पृ० १३७)। इस प्रसंग से यह स्पष्ट हो जाता है कि बुद्ध की बोधि-प्राप्ति के समय मक्खलि गोशाल एक प्रसिद्ध आचार्य हो चुका था भौर उसके शिष्य यत्र-तत्र विहार करते थे।
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