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इतिहास और परम्परा काल-निर्णय
१०५ डॉ० ओल्डनबर्ग'
ई० पू०४८० फएसन'
ई० पू०४८१ डॉ० ब्यूहलर
ई०पू०४८३ व ४८१
के बीच डॉ० व्हीलर, डॉ० गाइगर, डा० फ्लीट५ ई० पू० ४८३ तुकाराम कृष्ण लाडू६, राहुल सांकृत्यायन,
ई० पू०४८३ डॉ० जेकोबी डॉ० एच० सी० रायचौधरी
ई० पू० ४८६ डॉ. स्मिथ की दूसरी शोध के अनुसार
ई० पू० ४८७ प्रो० कर्न
ई० पू० ४८८ डॉ० स्मिथ की प्रथम शोध के अनुसार
ई० पू० ५४३ पं० धर्मानन्द कोसम्बी3 पं० भगवानलाल इन्दरजी१४
ई० पू० ६३८ उक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष तो सहज ही निकल जाता है कि इन बाईस अभिमतों में उन्नीस अभिमत ऐसे हैं, जो बुद्ध का निर्वाण-समय ई० पू० ५२७ के पश्चात् ही मानते हैं। यदि ई० पू० ५२७ को महावीर-निर्वाण का सही समय मान लिया जाता है, तो उक्त उन्नीस अभिमतों के अनुसार भगवान् बुद्ध ही उत्तरवर्ती ठहरते हैं।
इन अभिमतों में क्रमिक परिष्कार होता गया है, फिर भी इनमें से एक भी अभिमत ऐसा नहीं है, जो महावीर, बुद्ध, गोशालक, श्रेणिक, कोणिक आदि से सम्बन्धित समस्त घटना-प्रसंगों को साथ लेकर चल सकता हो । इसका तात्पर्य यह भी निकलता है कि अब तक
2. S. B. E., vol., XIII, Introduction to Vinaya Pitaka, p. XXII; The
Religions of India, by E. W. Hopkins, p. 310. २.Journal of Royal Asiatic Society, IV, p. 81. ३. Indian Antiquary, VI, p. 149.ff. (Also, see Budddism in Transla
tion p. 2). ४. Mahavamsa, Geiger's Translation, p. XXVIII; The Journal of
Royal Asiatic Society, 1909, pp. 1-134. 4. Journal of Royal Asiatic Society, 1908, pp. 471 ff. ६. वीर-
निर्वाण-संवत् और जैन-काल-गणना, पृ० १५५। ७. बुद्धचर्या, भूमिका, पृ० १। ८. श्रमण, वर्ष १३, अंक ६, पृ०११ । ६. Political History of Ancient India, p. 227. १०. Early History of India, pp. 46-47. ११. Der Buddhismus, Jaar Telling, vol. II, p. 63. १२. Early Histoy of India, 1924, pp,49-50. १३. भगवान् बुद्ध, पृ० ८६, भूमिका, पृ० १२ । १४. Indian Antiquary, vol. XIII, 1884, pp. 411 ff.
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