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________________ १०४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन खण्ड : १ आधारित है। इसके अनुसार बुद्ध-निर्वाण ई० पू० ५४४ में हुआ था। दूसरा तिथिक्रम 'केन्टन के बिन्दु संग्रह' (Cantonese Dotted Record) पर आधारित है। इस परम्परा का इतिहास इस प्रकार है : जब बुद्ध का निर्वाण हुआ, भिक्षु संघभद्र ने वह सूचना चीन पहुँचाई। वहाँ के केन्टन नगर के लोगों ने एक बिन्दु संग्रह (Dotted Record) की व्यवस्था की, जिसका प्रारम्भ भगवान् बुद्ध की निर्वाण-तिथि से किया गया तथा उसमें प्रतिवर्ष एक बिन्दु और जोड़ दिया जाता। यह परम्परा ई० सन् ४८६ तक चलती रही तथा जब समस्त बिन्दु गिने गये, तो उनकी संख्या ६७५ ज्ञात हुई। इसके अनुसार ई० पू० ४८६ में गौतम बुद्ध की निर्वाण-समय निर्धारित किया गया। तीसरा तिथि-क्रम चीनी तुर्किस्तान में प्रचलित है। कुतान (चीनी तुर्किस्तान) में पाये गये बौद्ध ग्रन्थों में दी गई एक दन्त कथा से पता लगता है कि बुद्ध-निर्वाण के २५० वर्ष बाद अशोक हुए। उस दन्त कथा से यह भी पता चलता है कि अशोक चीन के बादशाह शेह्वांगटी का समकालीन था। शेह्वांगटी ने ई० पू० २४६ से ई० पू० २१० तक राज्य किया था। इस तिथि-क्रम के आधार पर कुछ एक विद्वानों ने बुद्ध का निर्वाण-काल २४६+२५० =ई० पू० ४६६ भी माना है। इतिहासकारों का अभिमत आश्चर्य की बात यह है कि बहुत शोध-कार्य हो जाने के पश्चात् भी इतिहासकार किसी सर्वसम्मत निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके हैं । अधिकांश विद्वान् इस विषय में अपनाअपना नया मत स्थापित करते जा रहे हैं। विद्वानों द्वारा अभिमत बुद्ध-निर्वाण-काल निम्न प्रकार से हैं: ई० जे० थॉमस और जापानी विद्वान् ई० पू० ३८६ राइस डेविड्स ई० पू० ४१२ मैक्स मूलर व शाण्टियर ई० पू० ४७७ ज० कनिंगहेम व दीवानबहादुर स्वामी कन्नुपिल्ले१० ई० पू० ४७८ १. Vincent Smith, Early History of India, p. 49 २.Journal of Royal Asiatic Society, Great Britain, 1905, p. 51. 3. Sarat Chandra Das, Journal of Royal Asiatic Society, Bengal, 1886, pp. 193-203; Tchang, Synchronismes Chinois; V. A. Smith, Early History of India, pp. 49-50. ४. जनार्दन भट्ट, बुद्धकालीन भारत, पृ०३७१ । %. B. C. Law Commemoration Volume, vol. II, pp. 18-22. ६. Buddhism, pp. 212-213. 9. S. B. E, vol. X, Introduction to Dhammpada, p. XII. ८. Indian Antiquary,XLIII, 1914, pp. 126-133. E. Corpus Inscriptionum Indicarum, vol. 1, Introduction, p. V. १०.An Indian Ephemeris, I, pt. J, 1922, p. 471. ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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