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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन में प्रयुक्त हुआ है, न कि बहुवचन में।" (Chronological Problems p. 42f.n.) इस शिलालेख से यह स्पष्ट होता है कि उक्त नन्द राजा खारवेल के राज्यकाल के ५वें वर्ष से ३०० वर्ष पूर्व हआ था। डॉ. जायसवाल ने यह भी प्रमाणित किया है कि यह नन्द राजा नन्दीवर्धन ही था (op. cit; vol. XIII, p. 240)। उक्त शिलालेख की सोलहवीं पंक्ति में यह भी बताया गया है कि खारवेल के राज्यकाल का तेरहवाँ वर्ष मौर्य संवत् के १६५वें वर्ष में पड़ता है। शिलालेख की पंक्ति इस प्रकार है : "पाणंतरिय सठिवसतत राजा मुरियकाले वोच्छिनं च चोयठिअग सतक तुरियं उपादयति"-"उसने (खारवेल ने) राजा मुरिय-काल का १६४वां वर्ष जब समाप्त ही हुआ था (वोच्छिन) १६५वें वर्ष में (अगली पंक्तियों में उल्लिखित चीजों को) करवाया।" इस पंक्ति के अर्थ के विषय में भी सभी विद्वान् एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वान् इसमें किसी तारीख का उल्लेख हुआ है, ऐसा नहीं मानते, जबकि कुछ विद्वानों ने इसका खण्डन किया है। द्रष्टव्य,(Chronological Problems pp 47-8)। सुप्रसिद्ध इतिहासकार ई० जे० रेपसन ने इस विषय में यह टिप्पणी की हैं। "क्या इस शिलालेख में तारीख का उल्लेख है ? यह मूलभूत प्रश्न भी अब तक विवादास्पद है। कुछ विद्वान् मानते हैं कि सोलहवीं पंक्ति से यही तात्पर्य निकलता है कि यह शिलालेख मौर्य राजाओं के (अथवा राजा के) १६५वें वर्ष में लिखा गया । जब कि अन्य कुछ विद्वान् ऐसी कोई तारीख का उल्लेख हुआ है, ऐसा नहीं मानते । यद्यपि इस प्रकार की समस्याओं पर विचार-विमर्श करना प्रस्तुत ग्रन्थ के क्षेत्र से बाहर की बात है, फिर भी यह बताया जा सकता है कि किसी भी रूप में यह शिलालेख ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी के लगभग मध्य का है। हमें समान उदाहरणों से ज्ञात होता है कि राजवंशों के संवत् का प्रारम्भ प्रायः वंश-स्थापक के अदिकाल से माना जाता है। इसलिए मौर्य संवत् का प्रारम्भ चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्याभिषेक-काल ई० पू० ३२१ से माना जा सकता है तथा इसी संवत् का प्रयोग इस शिलालेख में हुआ हो, तो इस शिलालेख का समय ई० पू० १५६ होना चाहिए और खारवेल के राज्यारम्भ का समय ई० पू० १६६ के लगभग होना चाहिए। इस आनुमानिक काल-निर्णय के साथ इस तारीख से सम्बन्धित अन्य तथ्य भी संगत होते हैं।। "पुरातत्त्वीय दृष्टि से चिन्तन करने पर खारवेल के हाथीगुम्फा के शिलालेख व नांगनिक के नानाघाट के शिलालेख का समय वही आता है, जो कृष्ण के नासिक शिलालेख का है (Buhler, Archaeological Survey of Western India, vol. V, p. 71 Indische Palaeographie, p. 39)। इसलिए यदि ऐसा माना भी जाये कि खारवेल के शिलालेख में तारीख का कोई उल्लेख नहीं है तो भी यह मानने के लिए पर्याप्त प्रमाण है कि खारवेल ई०पू० द्वितीय शताब्दी के पूर्वार्ध में हुए शातकर्णा का समकालीन था। इतना ही नहीं, हाथी गुम्फा शिलालेख में ही शातकर्णी का उल्लेख खारवेल के प्रतिस्पर्धा के रूप में हुआ है तथा यह पूर्णतः सम्भव लगता है कि वह नानाघाट शिलालेख में उल्लिखित शातकर्णी से अभिन्न था।" (Cambridge History of India, vol. I, pp. 281-2.) ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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