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इतिहास और परम्परा ]
काल - निर्णय
अवन्ती - विजय के पश्चात् नन्दीवर्धन ने कलिंग पर आक्रमण किया और वहाँ से एक जैन-मूर्ति को उठाकर मगध ले आया । हाथीगुम्फा शिलालेख के आधार पर इस घटना का समय ई० पू० ४६६ प्रमाणित होता है ।"
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गया है, किन्तु मृच्छकटिक जैसी साहित्यिक कृतियों के आधार पर विद्वानों ने प्रमाfra किया है कि पालक का उत्तराधिकारी अजक या गोपालक था; अतः विशाखयूप को पालक - वंश में नहीं गिनना चाहिए जैसे - डॉ० शान्तिलाल शाह ने लिखा है : "What about Visahakhayupa who occurs in the Purana in between Palak and Aryak? According to the family history of Pradyota which we have seen just now, there is no place for Visakhayupa in between Palaka and Ajaka as reported"—Chronological Problems, p. 27। मजदूमदार शास्त्री ने लिखा है : "Visakhayupa has been Introduced between Palaka and Ajaka, but as that name does not occur in all Mss. we ought to take no notice of him."Journal of Bihar and Orissa Research Society, vol. VII, p. 116 ) । डॉ० रमाशंकर त्रिपाठी ने लिखा है : "पुराणों में पालक और अजक के बीच विशाखप का नाम रखा गया है, यह सम्भवतया भूल है" (प्राचीन भारत का इतिहास, पृ० ७२ ) । इस प्रकार २० वर्ष के पालक के राज्य काल के बाद अजक राजा हुआ । पुराणों में अजक का राज्य काल २१ वर्ष बताया गया है। तत्पश्चात् अवन्ती वर्धन या बर्ती वर्धन ने २० वर्ष राज्य किया । इस प्रकार पालक, अजक और अवन्तीवर्धन ने ६१ वर्ष राज्य किया और उसके बाद प्रद्योतों का अन्त हुआ । इस प्रकार जैन एवं पौराणिक दोनों ही काल-गणनाएं पालक वंश का राज्य ६० या ६१ वर्ष मानती हैं (तुलना कीजिए, Chronological Problems pp. 25-27 ) ।
१. कलिंग के राजा खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख में दो बार नन्द राजा का उल्लेख हुआ है ( द्रष्टव्य, E. J. Rapson, Cambridge History of India, vol I, P. 280) । इस शिलालेख की छुट्टी पंक्ति में लिखा गया है: “पंचमे वेदानि बसे नन्द राजा ति-वस-सत ओगाहितं -- तंसुलिय-वात पनदि (म् ) नगर पवेस ( यति ) ... " " ओर (अपने राज्य काल के ) पाँचवें वर्ष में वह ( खारवेल ) ३०० वर्ष पूर्व नन्द राजा द्वारा खोदी गई नहर तोसली तंसुलिय को राजधानी में लाता है (अथवा नहर के द्वारा नगर - विशेष में प्रवेश करता है अथवा नहर से सम्बन्धित किसी सार्वजनिक कार्य को करता है) ।" कुछ विद्वान् 'ति त्रस सत' का अनुवाद ' (नन्द राजा के ) १०३ वें वर्ष में' करते हैं, पर डॉ० के० पी० जायसवाल, डॉ० आर० डी० बनर्जी आदि विद्वानों ने इसका अर्थ “३०० वर्ष" ही किया है (द्रष्टव्य, Journal of Bihar and Orissa Research Society, Dec. 1917, pp. 425 ff.) । डॉ० शान्तिलाल शाह ने लिखा है : "ति-वस-सत का अर्थ निश्चित रूप से ३०० वर्ष है, १०३ वर्ष नहीं (देखें, डॉ० बनर्जी का लेख, J.B.OR.S., vol. III, d. 496 ff.) । मैं इसके साथ यह जोड़ना चाहता हूं कि 'वर्ष' शब्द का प्रयोग समास में हुआ है, इसलिए 'सत' शब्द एक वचन
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