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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ वंश का प्रथम राजा नन्दीवर्धन था।' मगध में ई० पू० ४७३ में राज्य स्थापित करने के पश्चात् नन्दीवर्धन ने ई० पू० ४६७ में अवन्ती पर विजय प्राप्त की। वहाँ पालक वंश या प्राद्योतों का अन्त किया तथा नन्द-वंश का राज्य स्थापित किया। यह प्रतीत होता है कि १. बौद्ध-काल-गणना के अनुसार अनिरुद्ध-मुण्ड के पश्चात् नागदशक और शुशुनाग ने क्रमशः २४ व १८ वर्ष राज्य किया (महावंश परिच्छेद ४, गाथा ४-६) । पुराणों में दर्शक और नन्दीवर्धन का काल क्रमशः २४ और ४२ (अथवा ४०) बताया गया है (वाय-पूराण, अ०६६, श्लो० ३२० : मत्स्यपुराण, अ० २७१, श्लो. १०)। लगता है. पुराणों का दर्शक और बौद्धों का नागदशक एक ही व्यक्ति है, जैसे कुछ इतिहासकारों ने माना है (डा० राधाकुमुद मुखर्जी-हिन्दू सभ्यता पृ० २६५; E.J. Rapson Combridge Histoay of India, p. 279.) यह भी सम्भव है कि दर्शक या नागदशक ने राजगह की शाखा-गद्दी पर २४ वर्ष राज्य किया और उसी के समकाल में मगध की मुख्य गद्दी (पाटलिपुत्र) में उदायी (१६ वर्ष व अनिरुद्ध-मुण्ड (वर्ष) ने राज्य किया। मण्ड के पश्चात दर्शक या नागदशक ने मगध की मुख्य गही पर कब्जा कर लिया और नन्दीवर्धन नाम रख कर नन्द-वंश की स्थापना की तथा १५ वर्ष राज्य किया (डॉ० टी० एल० शाह-प्राचीन भारतवर्ष) । पुराणों में जो नन्दीवर्धन का राज्य-काल ४२ वर्ष बताया गया है, वह राजगृह के २४ वर्ष और पाटलिपुत्र के १८ वर्ष मिलाकर हो सकता है। बौद्ध गणना में अनिरुद्धमण्ड के पश्चात जो शुशुनाग का उल्लेख है, वह भी नन्दीवर्धन के लिए ही हो सकता हैं ; क्योंकि शिशुनाग वंश का होने से उसे शैशुनाग या शुशुनाग भी कहा जा सकता है। २. पुराणों के अनुसार पुलक (अथवा सुनक) नामक मंत्री ने अपने राजा रिपुञ्जय का वध कर अपने पुत्र प्रद्योत को अवन्ती की गद्दी पर बैठाया (वायु-पुराण, अ० ६६ श्लो० ३०६-३१४, मत्स्य-पुराण, अ० २७१, श्लो० १-४) हम देख चुके हैं कि बार्हद्रथों के पश्चात् अवन्ती में प्राद्योतों का राज्य प्रारम्भ हुआ। प्राद्योतों के पाँच राजा इस प्रकार हुए: १. प्रद्योत (महासेन अथवा चण्डप्रद्योत) २. पालक ३. विशाखयूप ४. अजक (या गोपालक) ५. अवन्तीवर्धन (अथवा बर्तीवर्धन) जैन काल-गणना के अनुसार पालक का राज्याभिषेक उसी दिन हुआ, जिस दिन महावीर का निर्वाण हुआ तथा उसके वंश का राज्य-काल ६० वर्ष तक रहा। पौराणिक काल गणना में पालक का राज्य-काल २० वर्ष माना गया है (द्रष्टव्य, The purana Text of Dynesties of the Kali Age, p. 9. foot-note 26)। यद्यपि पुराणों की कुछ प्रतियों में २४ वर्ष का उल्लेख है। फिर भी विद्वानों ने २० वर्ष को ही सही माना है (द्रष्टव्य, Dr. Shanti Lal Shah, Chronological problems, p. 26)। तीसरे प्रद्योत राजा विशाखयूप का राज्य-काल पुराणों में ५३(अथवा ८५)वर्ष बताया ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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