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________________ इतिहास और परम्परा ] काल- निर्णय ६५ विम्बिसार के ८०७-५८२ है ।' ई० पू० ५=२ में बिम्बिसार का राज्य प्रारम्भ होता है। पश्चात् अजातशत्रु का राज्यारम्भ-काल निश्चित रूप से ई० पू० ५४४ तथा यह भी निश्चित किया जा चुका है कि महावीर निर्वाण के १७ वर्ष पूर्व अजातशत्रु के राज्य का प्रारम्भ हुआ तथा ३० वर्ष पश्चात् उसका अन्त हुआ । इस प्रकार अजातशत्रु का राज्य-काल ई० पू० ५४४ - ४६७ होता है । अजातशत्रु के पश्चात् उसका पुत्र उदायी मगध का राजा हुआ । उदायी ने १६ वर्ष राज्य किया; अतः उदायी का राज्य-काल ई० पू० ४६७ - ४८१ होता है । तत्पश्चात् अनिरुद्ध-मुण्ड के ८ वर्ष के राज्य काल के बाद ई० पू० ४७३ से मगध में शिशुनाग वंश का अंत हुआ। शिशुनाग वंश के बाद नन्द वंश का राज्य प्रारम्भ हुआ । नन्द १. डॉ० टी० एल० शाह ने पहले पाँच राजाओं का काल २२५ वर्ष तथा अन्तिम पाँच राजाओं का काल १०८ वर्ष माना है ; अतः बिम्बिसार का राज्यारम्भ ई० पू० ५८२ तथा शिशुनाग वंश का अन्त ई० पू० ४७४ में आता है । २. डॉ० वी० ए० स्मिथ ने भी बिम्बिसार का राज्यारोहण-काल ई० पू० ५८२ माना है; देखें, Oxford History of India, p. 45. । ३. जैन-काल-गणना अजातशत्रु के बाद उदायी को राजा मानती है। पुराणों के अनुसार अजातशत्रु के बाद क्रमशः दर्शक, उदायी, नन्दीवर्धन और महानन्दी राजा हुए। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदीयभद्र, अनिरुद्ध व मुण्ड राजा हुए। वस्तुतः नन्दीवर्धन और महानन्दी नन्दवंश के राजा थे (देखें, आगे की टिप्पण) दर्शक का उल्लेख पुराणों के अतिरिक्त स्वप्नवासवदत्ता जैसे प्रसिद्ध संस्कृत नाटक में राजगृह के राजा के रूप में हुआ है। मुनि कल्याण विजयजी ने (पूर्व उद्धृत ग्रन्थ, पृ० २२- ३) प्रमाणित किया है कि दर्शक मगध की मुख्य गद्दी चम्पा या पाटलीपुत्र का राजा न होकर राजगृह-शाखा का राजा था । बिम्बिसार के पश्चात् अजातशत्रु ने मगध की मुख्य राजधानी चम्पा में बनाई; ऐसा स्पष्ट उल्लेख जैन आगमों में मिलता है तथा जैन एवं बौद्ध काल-गणना अजातशत्रु के बाद उदायी का ही उल्लेख करती है। इससे यही अनुमान लगता है कि दर्शक मगध की मुख्य गद्दी का अधिकारी नहीं था । कुछ विद्वानों का अभिमत है कि दर्शक बिम्बिसार के अनेक पुत्रों और प्रपुत्रों में से कोई एक हो सकता है, जैसे डॉ० सीतानाथ प्रधान ने माना है - " दर्शक बिम्बिसार के अनेक पुत्रों में से एक हो सकता है, जो बिम्बिसार के जीवन में ही राज कार्य की देखभाल करने लगा हो ।" (Chronology of Ancient India, p. 212 ) ; तथा द्रष्टव्य, Political History of Ancient, India, by H. C. Raychaudhuri, p. 130; Mahavamsa tr. by Geiger, introduction.) । डॉ० सीतानाथ प्रधान ने यह भी लिखा है - "विष्णु पुराण का वह वंशानुक्रम, जिसमें अजातशत्रु और उदयाश्व के बीच दर्शक का उल्लेख है, अस्वीकार्य है ।" (Chronology of Ancient India, (p. 217 ) अतः मगध में शिशुनाग वंश की राज्य-काल-गणना में दर्शक गिनना आवश्यक नहीं है | Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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