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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ विचित्र रचना से पूर्णतया पुष्ट हो जाता है।"
इस प्रकार की अनेक असंगतियों के होते हुए भी बुद्ध-निर्वाण-काल का निश्चय करने के लिए किये गये अब तक के प्रयत्नों में सिलोनी काल-गणना को प्रधानता दी गई है। यही कारण है कि बुद्ध के तिथि-क्रम और वास्तविक जीवन-प्रसंगों के बीच असंगति पाई जाती है।
काल-गणना पर पुनर्विचार
जैन काल-गणना तथा सर्वमान्य ऐतिहासिक तिथियों और तथ्यों के आधार पर शिशुनाग-वंश के संस्थापक शिशुनाग से लेकर अवन्ती में चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण
१. महावंश का विषयानुक्रम इस प्रकार है :
१. तथागत का लंका आगमन २. महासम्मत का वंश ३. प्रथम संगीति ४. द्वितीय संगीति ५. तृतीय संगीति ६. विजय का आगमन ७. विजय का राज्याभिषेक ८. पांड्ड वासुदेव का राज्याभिषेक ६. अभय का राज्याभिषेक
(द्रष्टव्य, महावंश अनु० गाइगर, पृ०८) p. The pecularity of the Buddhist tradition (the Ceylonese tradition) that it confines itself firstly to the history of the Hinayana Buddhism and secondly to the history of its development in Ceylon, since Buddhism although originating India, had found its development in Ceylon. Because of this territorial limitation, wich has been a great factor for the preservation of the history of Ceylon, the account of this tradition about Ceylon is much more perfect than that about India, One who is acquainted with the scheme and content of the Dipavamsa and Mahavamsa will hardly fail to notice that the account of North Indian kings in these two books is only occasional and minor importance. This conclusion is absolutely borne out by the typical construction of the Dipavamsa and Mahavamsa.
-Chronological Problems, p. 19.
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