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इतिहास और परम्परा
काल निर्णय
विशेष ध्यान देने की बात तो यह है कि अनेक इतिहासकारों ने इन सिलोनी ग्रन्थों की प्रामाणिकता के विषय में बहुत समय पहले ही संदिग्धता व्यक्त कर दी थी। डॉ० वी० ए० स्मिथ ईस्वी सन् १९०७ में ही लिख चुके थे : "इन सिंहली-कथाओं की, जिनका मूल्य आवश्यकता से अधिक आँका जाता है, सावधानी पूर्वक समीक्षा की आवश्यकता है...।" डॉ० हेमचन्द्र राय चौधरी ने डॉ० स्मिथ की इस चेतावनी को मान्यता दी है और माना है कि महावंश की कथाओं को ऐतिहासिक धारणाओं का आधार नहीं बनाया जा सकता। डॉ० शान्तिलाल शाह ने बौद्ध काल-गणना में जो असंगतता है, उसे "जानबूझ कर किया गया गोलमाल' माना है। डॉ० शाह लिखते हैं : "बौद्ध परम्परा (सिलोनी परम्परा) की यह विचित्रता है कि उसमें मुख्यतया बौद्ध धर्म के हीनयान सम्प्रदाय का इतिहास दिया गया है और बाद में सिलोन में हुए इसके विकास का इतिहास दिया गया है; क्योंकि बौद्ध धर्म का उद्गम भारत में हुआ था, फिर भी उसका विकास सिलोन में हुआ । इस भौगोलिक मर्यादा के, जो कि सिलोन के इतिहास के संरक्षण में एक प्रमुख निमित्त है, फलस्वरूप इस परम्परा में भारत की अपेक्षा सिलोन के बारे में अधिक पूर्ण ब्यौरा मिलता है । जो व्यक्ति दीपवंश और महावंश की योजना व विषय से परिचित है, वह इस बात से कदाचित् ही अनभिज्ञ रहेगा कि इन दोनों ग्रन्थों में मिलने वाला उत्तर भारतीय राजाओं का ब्योरा केवल प्रासंगिक है और अल्प महत्त्व रखता है। यह निष्कर्ष दीपवंश और महावंश की
they are unreliable; and what reliance would it be wise to place upon the total, apart from the details, when we find it mentioned for the first time in a work Dipavamasa, written eight centuries after the date it is proposed to fix ?
If further proof were needed, we have it in the fact that the Dipavamsa actually contains the details of another calculation not based on the list of Kings (Raja-Parampara), but on a list of Theras (Thera-Parampara) stretching back from Asoka's time to the time of the great Teacher—which contradicts this calculation of 236 years.
-S.B.E., vol. XI, Introduction to Maha-Parinirvana
Sutta, p. XLVI. 8. These Sinhalese stories, the value of which has been sometimes over-estimated, demand cautious criticism........
- Early History of India, p. 9. २. Political History of Ancient India, P. 6. ३. Chronological Problems, p.41
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