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________________ ८८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ के पश्चात् क्रमशः काकवर्ण, क्षेमवर्धन, क्षेमजित्, प्रसेनजित्, बिम्बिसार और अजातशत्रु राजा हुए। ___ अब यदि उक्त पांच वंशों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये तो यह स्पष्ट होता है कि ये वंश क्रमशः उत्तरवर्ती नहीं हैं, अपितु प्रायः समसमायिक हैं। प्रथम वंश का उदयन, द्वितीय वंश का प्रसेनजित,चतुर्थ वंश का प्रद्योत व पंचम वंश का अजातशत्र (और बिम्बिसार) वत्स, कोशल, अवन्ती और मगध के समसामयिक राजा थे; बह असंदिग्धतया कहा जा सकता है (cf. Rapson, Cambridge History of India, p. 277)। अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस प्रकार द्वितीय वंश प्रथम वंश का उत्तरवर्ती नहीं है; उसी प्रकार पंचम वंश चतुर्थ वंश का उत्तरवर्ती नहीं है । तात्पर्य यह हुमा कि “हत्वा तेषां यशः कृत्स्नं शिशुनागो भविष्यति" में 'तेषां' अवन्ती के प्राद्योतों का वाचक नहीं है। यह भी निश्चित है कि चतुर्थ वंश ततीय वंश का समसामयिक नहीं, अपितु उत्तरवर्ती है जैसा कि स्पष्टतया बताया गया है। प्रश्न केवल यह रहता है कि बाहद्रथों का राज्य मगध में था, जब कि प्राद्योतों का अवन्ती में स्थापित हआ; यह कैसे सम्भव हो सकता है ? इसका उत्तर भी सम्भवत: यही है कि यद्यपि बार्हदरथों का राज्य प्रारम्भ में मगध में स्थापित हआ था, फिर भी जब शिशुनाग ने मगध में शशुनागों का राज्य स्थापित किया, तब बार्हद्रथों ने मगध से हटकर अवन्ती में अपना राज्य स्थापित किया। इस प्रकारी उत्तरवर्ती बाहदथ राजा और पूर्ववर्ती शैशुनाग क्रमशः अवन्ती और मगध के समसामयिक राजा थे तथा 'हत्वा तेषां यशः कृत्स्नं' में 'तेषां' का तात्पर्य 'बाहद्रथों' से है। पौराणिक श्लोकों की यह व्याख्या पौराणिक कालगणना के साथ भी पूर्णतः संगत हो जाती है। पुराणों के अनुसार बृहद्रथ-वंश के २२ राजाओं ने १००० वर्ष तक राज्य किया, जिनके नाम और राज्य-काल इस प्रकार हैं : १. सोमाधि ५८ वर्ष २. श्रुतश्रव ३. अयुतायुस् ४. निरमित्र ५. सुक्षत्र ६. बृहत्कर्मा ७. सेनजित् ८, श्रुतञ्जय ६. विभु (प्रभु) १०. शुची ११. क्षेम १२. भूव्रत १३. सुनेत्र (धर्मनेत्र) ३५ १४. निर्वृत्ति (विवृत्ति) १५. सुव्रत (त्रिनेत्र) ६० ॥ ० ० ० - ० ० ४ - I Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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