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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ नव नन्द राजाओं का काल क्रमशः १०० वर्ष तथा १५० वर्ष' माना गया है, वहाँ महावंश की बौद्ध काल-गणना केवल २२ वर्ष मानती है तथा दीपवंश में तो नन्दों का उल्लेख तक नहीं है । सिलोनी काल-गणना की अन्य असंगति यह है कि पौराणिक काल-गणना में जहाँ शिशुनाग, काकवर्ण (कालाशोक) आदि राजाओं के नाम अजातशत्रु के पूर्वजों में गिनाये गये हैं वहाँ दीपवंश महावंश में ये ही नाम अजातशत्रु के वंशजों में गिनाये गये हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से यह एक अक्षम्य भूल है। इनके अतिरिक्त महावंश की कुछ-एक मान्यताएँ न केवल मूल त्रिपिटकों के साथ असंगत होती हैं, अपितु मूलभूत १. मत्स्य पुराण, अ० २७२, श्लो० २२; वायु पुराण, अ० ६६, श्लो०३३० । २. तित्थोगाली पइन्नय, ६२१-६२३ ; विचार श्रेणी, जैन साहित्य संशोधक, खण्ड 2, अंक ३.४,१०४। ३. महावंश, परि० ४, गाथा १०८, परि० ५, गा० १४-१७।। ४. आधुनिक इतिहासकारों ने भी इसे भूल माना है। डॉ० स्मिथ ने नन्द-वंश का राज्य काल ८८ वर्ष माना है (Early History of India, p. 57); डॉ० राधाकुमुद मुखर्जी ने बौद्ध काल-गणना के २२ वर्षों को अयथार्थ सिद्ध किया है (हिन्दू सभ्यता, पृ० २६७)। ५. महावंश के अनुसार कालाशोक के समय में दूसरी बौद्ध संगीति हुई थी, किन्तु काला शोक तथा उसके समय में हुई दूसरी संगीति के विषय में इतिहासकार पूर्णरूप से संदिग्ध हैं। प्रो० नीलकण्ठ शास्त्री ने लिखा है : "The tradition says that the council was held in the time of Asoka, or Kalasoka the son of Sisunaga, but history does not know of any such king." (Age of Nandas and Mauryas, p. 30). ६. इतिहासकारों द्वारा अयथार्थ बौद्ध काल-गणना को मान्यता मिलने का एक सम्भव कारण यह लगता है कि पुराणों में आये निम्न श्लोक की व्याख्या अशुद्ध रूप से की गई है : अष्टत्रिशच्छतं भाव्याः प्राद्योताः पञ्च ते सुताः । हत्वा तेषां यशः कृत्स्नं शिशुनागो भविष्यति ।। -वायु पुराण, अ० ९६, श्लो० ३१४ । इस श्लोक के आधार पर यह माना जाता है कि शिशुनाग और काक-वर्ण अन्तिम प्राद्योत राजा (नन्दीवर्धन) के पश्चात् हुए; अत: ये प्राग-बुद्धकालीन न होकर पश्चात्-बुद्धकालीन थे ; परन्तु पुराणों के पूर्वापर श्लोकों के अनुशीलन से स्पष्ट हो जाता है कि उक्त मान्यता यथार्थ नहीं है। पुराणों में निम्न क्रम से कलियुग के राजवंशों का ब्यौरा प्राप्त होता है : १. पौरववंश-अभिमन्यु (जो महाभारत में लड़े थे) से क्षेमक तक; क्षेमक बुद्ध के समकालीन उदयन के बाद चतुर्थ राजा था। इस वंश की राजधानी पहले हस्तिनापुर थी और बाद में कोशम्बी। अधिसीमकृष्ण के वंशज राजा नचक्षु के समय में राजधानी का परिवर्तन हुमा। - Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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