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इतिहास और परम्परा]
काल-निर्णय है।" बौद्ध काल-गणना सिलोन से आई है, क्योंकि दीपवंश-महावंश की रचना सिलोनी भिक्षुओं द्वारा हुई है। इन ग्रन्थों के रचयिता के सम्बन्ध में राइस डेविड्स ने लिखा है: "ईस्वी चतुर्थ शताब्दी में किसी ने इन पालि-गाथाओं का संग्रह किया, जो सिलोन के इतिहास के सम्बन्ध में थीं। एक पूर्ण वृत्तान्त बनाने के लिए इनमें और गाथाएँ जोड़ी गईं । इस प्रकार के निर्मित अपने काव्य का नाम कर्ता ने दीपवंश दिया। जिसका अर्थ है-'द्वीप का समय-ग्रन्थ ।' इसके एकाध पीढ़ी पश्चात् महानाम ने अपने महान् ग्रन्थ महावंश को लिखा। वह कोई इतिहासकार नहीं था। उसके पास अपने दो पूर्वजों द्वारा प्रयुक्त सामग्री के अतिरिक्त केवल प्रचलित दन्त-कथाओं काही आधार था।"२
सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् के ये विचार बौद्ध काल-गणना की अनधिकृतता को प्रकट करते हैं। वस्तुत: बौद्ध काल-गणना जैन तथा पौराणिक काल-गणना के साथ संगत नहीं होती। उन दोनों की अपेक्षा यह बहुत दुर्बल रह जाती है।
दीपवंश महावंश को असंगतियां :
सिलोनी ग्रन्थ महावंश व दीपवंश में दी गई काल-गणना में कुछ भूलें तो बहुत ही आश्चर्यकारक हैं। समझ में नहीं आता, इतिहासकारों द्वारा इनकी अनधिकृतता को मान्यता किस प्रकार मिल गई ! उदाहरणार्थ-पौराणिक और जैन काल-गणनाओं में जहाँ
$. Modern European writers have inclulued to disparage unduly the
authority of the Puranic lists, but closer study finds in them much genuine and valuable historical tradition.
- Early History of India, p. 12 8. In the fourth century of our era, some one collected such of thesə
Pali verses, as referred to the history of Ceylon, piecing them together by other verses to make a consecutive narrative. He called his poem, thus coustructed, the Dipavamsa,—the Island Chronicle.
"A generation afterwards Mahanama wrote his great work, the Mahavamsa. He was no historian, and had, besides the material used by his two predecessors, only popular legends work on.
--Buddhist India, pp. 277-78 3. It is to be noted that the Buddhist tradition runs counter to the Brahminical and Jain traditions.
--Dr. Radha Kumud Mukherjee, Chandragupta Maurya and his Times, p.20
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