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इतिहास और परम्परा] काल-निर्णय
८३ तेरापंथ के मनीषी आचार्यों ने जिस काल-गणना को माना है, उससे महावीर-निर्वाण का समय ई० पू० ५२७ आता है। भगवान् महावीर की जन्म-राशि पर उनके निर्वाण के समय भस्म-ग्रह लगा। उसका काल शास्त्रकारों ने २००० वर्ष का माना है।' श्रीमज्जयाचार्य के निर्णयानुसार २००० वर्ष का वह भस्म-ग्रह विक्रम संवत् १५३१ में उस राशि से उतरता है तथा शास्त्रकारों के अनुसार महावीर-निर्वाण के १६६० वर्ष पश्चात् ३३३ वर्ष की स्थिति वाले धूमकेतु ग्रह के लगने का विधान है। श्रीमज्जयाचार्य के अनुसार वह समय वि० सं० १८५३ होता है । उक्त दोनों अवधियाँ सहज ही निम्न प्रकार से महावीर-निर्वाण के ई० पू० ५२७ के काल पर इस प्रकार पहुँच जाती हैंभस्म-ग्रह की स्थिति
२००० वर्ष भस्म-ग्रह उतरा
ई० सन् १४७३ (वि० सं० १५३०) अत: महावीर-निर्वाण
ई० पू० ५२७ इसी प्रकार महावीर-निर्वाण के १९६०+३३३ वर्ष बाद धूमकेतु उतरा, अत: २३२३ वर्ष कूल स्थिति।
उतरने का समय- १७६६ ई० स० (वि० स० १८५३)
अतः महावीर-निर्वाण - ई० पू० ५२७ - जैन परम्परा में 'वीर-निर्वाण-संवत्' चल रहा है। विशेषता यह है कि वह निर्विवाद और सर्वमान्य है। वह संवत् भी ई० पू० ५२७ पर आधारित है । अभी ईस्वी सन् १९६७ में वीर-निर्वाण संवत् २४६४ चल रहा है, जो ईस्वी से ५२७ वर्ष अधिक है, जैसा कि होना ही चाहिए।
महावीर-निर्वाण ई० पू० ५२७ में निश्चित हो जाने से उनके प्रमुख जीवन-प्रसंगों का तिथि-क्रम इस प्रकार बनता है:
जन्म
ई० पू० ५६६ दीक्षा
ई० पू० ५६६ कैवल्य-लाभ ई० पू० ५५७ निर्वाण
ई० पू० ५२७
काल-गणना
भारतवर्ष में मुख्यतया तीन प्राचीन काल-गणनाएँ प्रचलित हैं : (१) पौराणिक, (२) जुन और (३) बौद्ध । पौराणिक काल-गणना का आधार विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, वाय पुराण, भागवत पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण आदि हैं। जैन काल-गणना का आधार तित्थोगाली पइन्नय, आचार्य मेरुतुंग द्वारा रचित विचार-श्रेणी आदि हैं । बौद्ध काल-गणना का आधार सिलोनी ग्रन्थ दीपवंश, महावंश आदि हैं।
१. कल्प सूत्र, सू० १२८-३० । २. भ्रमविध्वंसनम्, भूमिका, पृ० १४.१५ । ३. बंग चूलिका।
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