________________
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
"अलबेरुनी से पूर्व शताब्दियों में कुछ जैन ग्रन्थकारों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि गुप्त तथा शक-काल में २४१ वर्ष का अन्तर है । प्रथम लेखक जिनसेन, जो ८वीं शताब्दी में वर्तमान थे, उन्होंने वर्णन किया है कि भगवान् महावीर के निर्वाण के ६०५ वर्ष ५ माह के पश्चात् शक राजा का जन्म हुआ तथा शक के अनुसार गुप्त के २३१ वर्ष शासन के बाद कल्किराज का जन्म हुआ। द्वितीय ग्रन्थकार गुणभद्र ने उत्तरपुराण में (८८६ ई.) लिखा है कि महावीर.निर्वाण के १००० वर्ष बाद कल्किराज का जन्म हुआ। जिनसेन तथा गणभद्र के कथन का समर्थन तीसरे लेखक नेमिचन्द्र करते हैं।
"नेमिचन्द्र त्रिलोकसार में लिखते हैं : “शकराज महावीर-निर्वाण के ६०५ वर्ष ५ माह के बाद तथा शक-काल के ३६४ वर्ष ७ माह के पश्चात् कल्किराज पैदा हुआ। इन के योग से-६०५ वर्ष माह+३९४ वर्ष ७ माह =१००० वर्ष होते हैं ।' इन तीनों जैन ग्रन्थकारों के कथनानुसार शकराज तथा कल्किराज का जन्म निश्चित हो जाता है।"
इस प्रकार शक-संवत् का निश्चय उक्त जैन धारणाओं पर करके विद्वान् लेखक ने महाराज हस्तिन् के खोह-लेख आदि के प्रमाण से गुप्त संवत् और शक संवत् का सम्बन्ध निकाला है। निष्कर्ष रूप में वे लिखते हैं : "इस समता से यह ज्ञात होता है कि गुप्त संवत् की तिथि में २४१ जोड़ने से शक-काल में परिवर्तन हो जाता है। इस विस्तृत विवेचन के कारण अलबेरुनी के कथन की सार्थकता ज्ञात हो जाती है। यह निश्चित हो गया है कि शककाल के २४१ वर्ष पश्चात् गुप्त संवत् का आरम्भ हुआ।" फलितार्थ यह होता है कि इस सारी काल-गणना का मूल भगवान् महावीर का निर्वाण-काल बना है। वहाँ से उतर कर वह कालगणना गुप्त संवत् तक आई है। यहाँ से मुड़कर यदि हम वापस चलते हैं, तो निम्नोक्त प्रकार से ई० पू० ५२७ के महावीर-निर्वाण-काल पर पहुंच जाते हैं : गुप्त संवत् का प्रारम्भ
ई०३१६ महावीर-निर्वाण
गुप्त संवत् पूर्व ८४६ अतः महावीर का निर्वाण-काल
9
..........................
...... "गुप्तानां च शतद्वयम् । एकविंशश्च वर्षाणि कालविद्भिरुदाहृतम् ।।४६०।। द्विचत्वारिंशदेवातः कल्किराजस्य राजता । ततोऽजितंजयो राजा स्यादिन्द्र पुरसंस्थितः ।।४६१।। वर्षाणां षट्शतीं त्यक्त्वा पञ्चाग्रां मासपञ्चकम् । मुक्ति गते महावीरे शकराजास्ततोऽभवत् ॥५४६।।
-जिनसेन कृत हरिवंशपुराण, अ०६०। २. Indian Antiquary, vol.XV, p. 143. ३. पण छस्सयं वस्सं पण मासजुदं गमिय वीरणिवुइदो । सगराजो सो कक्की चदुणवतियमहिय सगमासं ।।
–त्रिलोकसार,१०३२। ४. गुप्त साम्राज्य का इतिहास, भाग १, पृ० १८१ ।
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org