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इतिहास और परम्परा]
काल-निर्णय
शक संवत् महावीर-निर्वाण के ६०५ वर्ष व ५ महीने बाद आरम्भ होता है। ऐतिहासिक धारणा से शक संवत् का प्रारम्भ ई० पू०७८ से होता है। उस निष्कर्ष से भी महावीरनिर्वाण का काल ६०५-७८= ई० पू० ५२७ ही होता है ।
डॉ. वासुदेव उपाध्याय, अपने ग्रन्थ 'गुप्त साम्राज्य का इतिहास'3 में गुप्त संवत्सर की छानबीन करते हुए लिखते हैं :
१. (क) जं रयणि सिद्धिगओ, अरहा तित्थंकरो महावीरो ।
तं रयणिमवन्तीए, अभिसित्तो पालओ राया ॥६२०।। पालगरण्णो सट्ठी, पुण पण्णसयं वियाणि णंदाणं । मुरियाणं सट्ठिसयं पणतीसा पूसमित्ताणं (त्तस्स) ॥६२१॥ बलमित्त-भाणु मित्ता, सट्ठी चत्ताय होन्ति नहसेणे । गद्दभसयमेगं पुण, पडिवन्नो तो सगो राया ॥६२२।। पंच य मासा पंच य, वासा छच्चेव होंति वाससपा । परिनिव्वुअस्सऽरिहतो, तो उप्पन्नो (पडिवन्नो) सगो राया ॥६२३॥
-तित्थोगाली पइन्नय । (ख) श्री वीरनिर्वृ तेवः षड्भिः पञ्चोत्तरैः शतैः । शाकसंवत्सरस्यैषा प्रवृत्तिभरतेऽभवत् ॥
-मेरुतुंगाचार्य-रचित, विचार-श्रेणी (जैन-साहित्य-संशोधक, खण्ड २
अंक ३-४, पृ० ४)। (ग) छहिं वासाण सएहिं पञ्चर्हि वासेहिं पञ्चमासेहिं । मम निव्वाण गयस्स उ उपाज्जिस्सइ सगो राया।
-नेमिचन्द्र-रचित, महावीर-चरियं, श्लो० २१६६, पत्र-९४-१ । पणछस्सयवस्सं पणमासजुदं गमिय वीरणिव्वुइदो। सगराजो तो कक्की चदुणवतियमहियसगमासं ॥
-नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती-रचित, त्रिलोकसार, ८५०। (ङ) वर्षाणां षट्शतीं त्यक्त्वा पंचाग्रां मासपंचकम् । मुक्ति गते महावीर शकराजस्ततोऽभवत् ॥
-जिनसेनाचार्य-रचित, हरिवंश पुराण, ६०-५४६ । णिव्वाणे वीरजिणे छन्वास सदेसु पंचवरिसेसु । पणमासेसु गदेसु संजादो सगणिओ अहवा ॥
-तिलोयपण्णत्ति, भाग १,प०३४१। (छ) पंच य मासा पंच व वासा छच्चेव होंति वाससया। सगकालेण य सहिया थावेयव्वो तदो रासी ।।
-धवला, जैन सिद्धान्त भवन, आरा, पत्र ५३७ । २. An Advanced History of India, p. 120%; गुप्त साम्राज्य का इतिहास,
प्रथम खण्ड, पृ०१८२-१८३ । ३. भाग १, पृ० ३८२।
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