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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ जीवन के विषय में चर्चाएँ कैसे होती ? यदि बुद्ध पूर्ववर्ती होते, तो जैन-शास्त्रों में उनकी चर्चा आए बिना ही कैसे रहती।' बौद्ध पिटकों का संकलन बुद्ध-निर्वाण के अनन्तर ही अर्हत् शिष्यों द्वारा होता है । बुद्ध महावीर से उत्तरवर्ती थे ; अतः उनमें महावीर के जीवन-प्रसंगों का उल्लिखित होना स्वाभाविक है ही। समय-विचार
इस प्रकार उक्त तथ्यों के आधार से हम इस निष्कर्ष पर तो असंदिग्ध रूप से पहुंच ही जाते हैं कि महावीर बुद्ध से वयोवृद्ध और पूर्व-निर्वाण-प्राप्त थे। विवेचनीय विषय रहता है-उनकी समसामयिकता का अर्थात् कितने वर्ष वे एक दूसरे की विद्यमानता में जीये। पर, यह जान लेना तभी संभव है, जब उनके जीवन-वृत्तों को संवत्सर और तिथियों में बांधा जाए। आगमों और त्रिपिटकों में उनके जन्म व निर्वाण-सम्बन्धी महीनों व तिथियों का उल्लेख मिलता है। पर, आज की संवत् या सन् पद्धति से उनके जन्म और निर्वाण के सम्बन्ध में कहीं कुछ नहीं मिलता। वह इसलिए कि सम्भवतः उस समय किसी व्यवस्थित संवत्सर का प्रचलन था ही नहीं। दोनों युग-पुरुषों की समसामयिकता के निर्णय में पूर्वापर के अतिरिक्त उल्लेखों से ही काम चलाना होता है। पहले हमें महावीर के तिथि-काल पर विचार करना होगा; क्योंकि अपेक्षाकृत बुद्ध के तिथि-क्रम से, वह अधिक स्पष्ट और असंदिग्ध है। महावीर का तिथि-क्रम
पिछले प्रकरणों में यह भलीभांति बताया जा चुका है कि महावीर-निर्वाण का असंदिग्ध समय ई० पू० ५२७ का है। इस विषय में एक अन्य प्रमाण यह भी है कि इतिहास के क्षेत्र में सम्राट चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण ई० पू० ३२२ माना गया है। इतिहासकार
१. सूत्रकृतांग आदि सूत्रों में बौद्ध मान्यताओं से सम्बन्धित मीमांसा नगण्य रूप में मिलती
है। द्वादशांगी के मूल स्वरूप में भी पूर्वधर आचार्यों द्वारा समय-समय पर आवश्यक परिवर्तन किया जाता रहा है। अतः बौद्ध-धर्म सम्बन्धी मीमांसा उक्त तथ्य में बाधक नहीं बनती। २. अनेक अधिकारी इतिहासज्ञों व विद्वानों ने इसी तिथि को मान्य रखा है । उदा.
हरणार्थ(क) महामहोपाध्याय रायबहादुर गौरीशंकर ओझा, श्री जैन सत्य प्रकाश, वर्ष २, ___अंक ४-५, पृ० २१७-८१। (ख) डॉ० बलदेव उपाध्याय, धर्म और दर्शन, पृ० ८६ । (ग) डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल, तीर्थंकर महावीर, भा० २, भूमिका पृ० १६ । (घ) डॉ० हीरालाल जैन, तत्त्व-समुच्चय, पृ०६। (ङ) महामहोपाध्याय पं० विश्वेश्वरनाथ रेउ, भारत का प्राचीन राजवंश, खण्ड २,
पृ० ४३६। ३. Dr. Radha Kumud Mukherjee, Chandragupta Maurya and His
Times, pp. 44-6; तथा श्रीनेत्र पाण्डे, भारत का बृहत् इतिहास, प्रथम भाग, प्राचीन भारत, चतुर्थ संस्करण, २४२ ।
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