________________
इतिहास और परम्परा] काल-निर्णय
७६ मानते हैं कि इतिहास के इस अन्धकारपूर्ण वातावरण में यह एक प्रकाशस्तम्भ' है । यह समय सर्वमान्य और प्रामाणिक है । इसे ही केन्द्र-बिन्दु मानकर इतिहास शताब्दियों पूर्व और शताब्दियों पश्चात् की घटनाओं का समय पकड़ता है । जैन परम्परा में मेरुतुंग की विचार श्रेणि, तित्योगाली पइन्नय आदि प्राचीन ग्रन्थों में चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण महावीर-निर्वाण के २१५ वर्ष पश्चात् माना है । वह राज्यारोहण उन्होंने अवन्ती का माना है । यह ऐतिहासिक तथ्य है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने पाटलिपुत्र (मगध) राज्यारोहण के १० वर्ष पश्चात् अवन्ती में अपना राज्य स्थापित किया था। इस प्रकार जैन-काल-गणना और सामान्य ऐतिहासिक धारणा परस्पर संगत हो जाती है और महावीर का निर्वाण ई० पू० ३१२-+२१५= ई० पू० ५२७ में होता है।
उक्त निर्वाण-समय का समर्थन विक्रम, शक, गुप्त आदि ऐतिहासिक संवत्सरों से भी होता है। विक्रम संवत् के विषय में जैन परम्परा की प्राचीन पट्टावलियों व ग्रन्थों में बताया गया है-भगवान् महावीर के निर्वाण-काल से ४७० वर्ष बाद विक्रम संवत् का प्रचलन
8. To these sources, Indian history is also indebted for what has
been called, the sheet-anchor of its chronology, for the starting point of Indian chronology is the date of Chandragupta's accession to sovereignty.
-Radha Kumud Mukherjee, Chandragupta Maurya and His
Times, p. 3. २. (क) The date 313 B. C. for Chandragupta's accession, if it is
based on correct tradition, may refer to his acquisition of Avanti in Malwa, as the chronological datum is found in verse where the Maurya king finds mention the list of succession of Palak, the king of Avanti.
-H. C. Ray Choudhuri, Political History of Ancient India, p. 295 (ख) The Jain date 313 B. C., if based on correct tradition, may refer to acquisition of Avanti (Malwa)
—An Advanced History of India, p. 99. (ग) यद्यपि ई० पू० ३१३, चन्द्रगुप्त के राज्याभिषेक की तिथि शुद्ध परम्परा के आधार पर अनुमानित है, परन्तु यह तिथि उनके अवन्ती अथवा मालवा के विजय का निर्देश करती है। क्योंकि उस श्लोक में, जिसमें तिथि क्रम-तालिका अंकित है, अवन्ती शासक पालक के अनुवर्ती शासकों में चन्द्रगुप्त मौर्य की चर्चा की गई है। -
-श्रीनेत्र पाण्डे, भारत का बृहत् इतिहास, पृ० २४५-२४६ । ३. (क) जं रणि कालगओ, अरिहा तित्थंकरो महावीरो।
तं रयणि अवणिवई, अहिसित्तो पालओ राया ॥१॥ सट्ठी पालयरण्णो ६०, पणवण्णसयं तु होइ नंदाणं १५५ । अट्ठसयं मुरियाणं १०८, तीस च्चिय पूसमित्तस्स ३० ॥२॥
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org