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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
तीर्थकर, बहुजन-सम्मत पूरणकस्सप, मक्खलि गोशाल, अजित केस कम्बली, पकुध कच्चायन संजय वेलट्टिपुत्त और निगण्ठ नातपुत्त के पास क्रमशः गया और उनसे प्रश्न पूछे । सभी तीर्थकर उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके; अपितु वे कोप, द्वेष और अप्रसन्नता ही व्यक्त करने लगे तथा उल्टे उससे ही प्रश्न पूछने लगे। समिय बहुत असन्तुष्ट हुआ। उसका मन नाना ऊहापोहों से भर गया और उसने निर्णय किया-अच्छा हो, गृहस्थ होकर सांसारिक आनन्द लूटूं।
सभिय परिव्राजक के मन में ऐसा भी विचार उत्पन्न हुआ-श्रमण गौतम भी संघी गणी, गणाचार्य.. बहुजन-सम्मत हैं, क्यों न में उनसे भी ये प्रश्न पूछ। उसका मन तत्काल ही आशंका से भर गया। उसने सोचा, पूरण कस्सप, मक्खलि गोशाल, अजित केसकम्बली, पकुध कच्चायन, संजय वेलट्ठिपुत्त और निगण्ठ नातपुत्त' जैसे जीर्ण, वृद्ध, वयस्क, उत्तरावस्था को प्राप्त वयोतीत, स्थविर, अनुभवी, चिर प्रवजित, संघी, गणी, गणाचार्य, प्रसिद्ध, यशस्वी, तीर्थंकर, बहुजन-सम्मानित श्रमण-ब्राह्मण मी मेरे प्रश्नों का उत्तर न दे सके; न दे सकने पर कोप, द्वेष व अप्रसन्नता व्यक्त करते हैं और मुझ से ही इनका उत्तर पूछते हैं। श्रमण गौतम क्या मेरे इन प्रश्नों का उत्तर दे सकेंगे ? श्रमण गौतम तो आयु में युवा और प्रव्रज्या में नवीन'२ हैं । फिर भी श्रमण युवक होता हुआ भी महद्धिक और तेजस्वी होता है; अतः श्रमण गौतम से भी मैं इन प्रश्नों को पूछू ।
(३) एक समय बुद्ध राजगृह में जीवक कौमार-मृत्य के आम्र-वन में साढ़े बारह सौ भिक्षुओं के बृहद् संध के साथ विहार कर रहे थे। पूर्णमासी के उपोसथ का दिन था। चातु
सिक कौमुदी से युक्त पूर्णिमा की रात को, राजा मागध अजातशत्रु वैदेहीपुत्र, राज-अमात्यों से घिरा हुआ, उत्तम प्रासाद पर बैठा था । उस समय अजातशत्रु ने उदान कहा-''अहो ! कैसी रमणीय चांदनी रात है ! कैसी सुन्दर, दर्शनीय, प्रासादिक व लाक्षणिक रात है ! किस . श्रमण या ब्राह्मण का सत्संग करें, जो हमारे चित्त को प्रसन्न करे।"
एक राजमंत्री ने कहा-"महाराज! पूरणकस्सप गणनायक, गणाचार्य, ज्ञानी, यशस्वी, तीर्थकर, बहुजन-सम्मानित, अनुभवी, चिर-प्रव्रजित व वयोवृद्ध हैं । आप उनसे धर्मचर्चा करें । उनका अल्पकालिक सत्संग भी आपके चित्त को प्रसन्न करेगा।"
राजा अजातशत्रु ने सुना, किन्तु, मौन रहा।
दूसरे मंत्री ने उक्त विशेषणों को दुहराते हुए मक्खलि गोशाल को सुझाव दिया । राजा अजातशत्रु मौन रहा। इस प्रकार विभिन्न मंत्रियों ने इसी उक्ति के साथ क्रमशः अजित केसकम्बली, पकुध कच्चायन, निगण्ठ नातपुत्त व संजय वेलट्ठिपुत्त का सुझाव दिया। अजात
१. समणब्राह्मणा जिण्णा बुद्धा महल्लका अद्धगता वयो अनुप्पत्ता, थेरारत्तजू चिरपव्व. जित्ता.. पूरणोकस्सपो...पे... निगण्ठो नातपुत्तो,...।
-सुत्तनिपात, सभिय सुत्तं, पृ० १०४ । २. ...कि पन में समणो गोतमो इमे पञ्हे पुट्ठो व्याकरिस्सति । समणो हि गोतमो दहरो चेव जातिया नवो च पव्वज्जायाति ।
–सुत्तनिपात, सभिय सुत्तं, पृ० १०६ । ३. सुत्तनिपात, सभियसुत्तं, पृ० १०४-१०७ ।
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