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इतिहास और परम्परा
काल-निर्णय कर जो उपदेश किये हैं, उनमें किसी भी भिक्षुक की मैं मत-मिन्नता नहीं देखता। किन्तु, जो पुद्गल भगवान् के आश्रय से विहरते हैं, भगवान् के न रहने के बाद संघ में जीविका के विषय में, प्रातिमोक्ष (भिक्षु-नियम) के विषय में वे विवाद उत्पन्न कर सकते हैं। वह विवाद बहुतजनों के अहित के लिए, असुख के लिए, अनर्थ के लिए, देव-मनुष्यों के अहित और दुःख के लिए होगा।'
(२) भगवान् बुद्ध एक समय शाक्य देश में वेधजा नामक शाक्यों के आम्र-वनप्रासाद में विहार कर रहे थे। निण्ठ नातपुत्त की कुछ ही समय पूर्व पावा में मृत्यु हुई थी। उनकी मृत्यु के अनन्तर ही निगण्ठों में फूट हो गई, दो पक्ष हो गये, लड़ाई चल रही थी और कलह हो रहा था। निगण्ठ एक दूसरे को वचन-वाणों से बींधते हुए विवाद कर रहे थे-'तुम इस धर्म-विनय को नहीं जानते, मैं इस धर्म-विनय को जानता हूं। तुम भला इस धर्म-विनय को क्या जानोगे ? तुम मिथ्या-प्रतिपन्न हो, मैं सम्यक् प्रतिपन्न हं। मेरा कहना सार्थक है, तम्हारा कहना निरर्थक है। जो बात पहले कहनी चाहिये थी, वह तुमने पीछे कही। जो पीछे कहनी चाहिए थी, वह तुमने तुमने पहले कही। तुम्हारा विवाद बिना विचार का उल्टा है । तुमने वाद रोपा है, तुम निग्रह-स्थान में आ गये। तुम इस आक्षेप से बचने के लिए यत्न करो, यदि शक्ति है तो इसे सुलझाओ।" मानों निगण्ठों में युद्ध हो रहा था। - निगण्ठ नातपुत्त के श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य भी नातपुत्तीय निगण्ठों में वैसे ही विरक्त-चित्त हो रहे थे, जैसे नातपुत्त के दुराख्यात, दुष्प्रवेदित, अनैर्याणिक, अन-उपशमसंवर्तनिक, अ-सम्यक्-सम्बुद्ध-प्रवेदित, प्रतिष्ठा-रहित, भिन्न-स्तूप, आश्रय-रहित धर्म में अन्यमनस्क, खिन्न और विरक्त हो रहे थे।
चुन्द समणुद्देस पावा में वर्षावास कर सामगाम में आयुष्मान् आनन्द के पास गये और उन्हें निगण्ठ नातपुत्त की मृत्यु तथा निगण्ठों में परिव्याप्त फूट की विस्तृत सूचना दी। आयुष्मान् आनन्द बोले-"आवुस चुन्द ! यह कथा भेंट रूप है । हम भगवान के पास चलें और उनसे यह निवेदन करें।"
आयुष्मान् आनन्द और चुन्द समणुद्देस भगवान् के पास आये । अभिवादन कर दोनों ही एक ओर बैठ गये। आयुष्मान् आनन्द ने भगवान् को निवेदन किया-भन्ते ! चुन्द समणुद्देस ऐसा कह रहे हैं कि निगण्ठ नातपुत्त अभी-अभी (कुछ दिन पूर्व ही) मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। उनके संघ में भयंकर विग्रह हो रहा है । सभी श्रमण एक दूसरे पर आक्षेप-प्रत्याक्षेप कर रहे हैं । भन्ते ! मुझे भी ऐसा अनुभव होता है कि भगवान् के बाद भी संघ में कहीं ऐसा विग्रह उत्पन्न न हो जाये। वह विवाद बहुत जनों के अहित के लिए, बहुत जनों के असुख के लिए, बहुत जनों के अनर्थ के लिए, देव-मनुष्यों के अहित और दु:ख के लिए होगा।"
___ भगवान् बुद्ध ने कहा-“चुन्द ! जहां शास्ता सम्यक् सम्बुद्ध नहीं होता, धर्म दुराख्यात होता है, वहां क्या नहीं हो सकता ? अतः चुन्द ! जिस धर्म को मैंने साक्षात्कार कर तुम्हें उपदेश किया है, उसे सभी मिलजुलकर ठीक समझें, विवाद न करें !"३
(३) पावा-वासी मल्लों का उन्नत व नवीन संस्थागार उन्हीं दिनों बना था। तब
१. मज्झिम निकाय, सामगाम सुत्तन्त, ३-१-४ । २. दीघ निकाय, पासादिक सुत्त, ३-६ ।
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