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आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
परम्पराओं में मूल रूप से प्रमाण माने जाते हैं। उत्तरवर्ती ग्रन्थ वहीं तक प्रमाण हैं, जहां तक कि वे उन मौलिक शास्त्रों का साथ देते हैं ।
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महावीर और बुद्ध की समसामयिकता पर विचार करने में अनेकानेक आघार उपलब्ध होते हैं, किन्तु उन सबमें भी साक्षात्, स्पष्ट और अनन्तर प्रमाण बौद्ध पिटकों का है । अतः आवश्यक है, बौद्ध पिटकों के उन प्रकरणों पर एक-एक कर विचार किया जाये ।
निर्वाण प्रसंग
जिन प्रकरणों में भगवान् महावीर के निर्वाण की चर्चा की है, वे क्रमश: इस प्रकार हैं :
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( १ ) भगवान् शाक्य देश में सामगाम में विहार कर रहे थे । निगण्ठ नातपुत्त की कुछ ही समय पूर्व पावा में मृत्यु हुई थी । उनकी मृत्यु के अनन्तर ही निगण्ठों में फूट हो गई, दो पक्ष हो गए, लड़ाई चल रही थी और कलह हो रहा था । निगष्ठ एक दूसरे को वचन - बाणों से बींधते हुए विवाद कर रहे थे - ' तुम इस धर्म - विनय को नहीं जानते, मैं इस धर्मविनय को जानता हूँ । तुम मला इस धर्म - विनय को क्या जानोगे ? तुम मिथ्या प्रतिपन्न हो, मैं सम्यक् प्रपन्न हूँ | मेरा कहना सार्थक, तुम्हारा कहना निरर्थक है । जो बात पहले कहनी चाहिए थी, वह तुमने पीछे कही । जो पीछे कहनी चाहिए थी, वह तुमने पहले कही । तुम्हारा विवाद बिना विचार का उल्टा है । तुमने वाद रोपा है, तुम निग्रह स्थान में आ गये । तुम इस आक्षेप से बचने के लिए यत्न करो, यदि शक्ति है तो इसे सुलझाओ।' मानो निगण्ठों में युद्ध हो रहा था ।
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निगण्ठ नातपुत्त के श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य भी नातपुत्तीय निगण्ठों में वैसे ही विरक्त-चित्त हो रहे थे, जैसे नातपुत्त के दुराख्यात, दुष्प्रवेदित, अनैर्याणिक, अन्-उपशमसंवर्तनिक, अ-सम्यक् सम्बुद्ध प्रवेदित, प्रतिष्ठा रहित, भिन्न स्तूप, आश्रय-रहित धर्म में अन्यमनस्क, खिन्न और विरक्त हो रहे थे ।
चुन्द सरणुद्देस पावा में वर्षावास कर सामगाम में आयुष्मान् आनन्द के पास गये और उन्हें निगण्ठ नातपुत्त की मृत्यु तथा निगन्ठों में परिव्याप्त फूट की विस्तृत सूचना दी । आयुष्मान आनन्द बोले - " आवुस चुन्द ! यह कथा भेंट रूप है । हम भगवान के पास चलें और उनसे यह निवेदित करें ।"
आयुष्मान् आनन्द और चुन्द समणुद्देस भगवान् के पास आये । अभिवादन कर दोनों ही एक ओर बैठ गये । आयुष्मान् आनन्द ने भगवान् को निवेदित किया "भन्ते ! चुन्द समद्देस ऐसा कह रहे हैं कि निगष्ठ नातपुत्त अभी-अभी ( कुछ ही दिन पूर्व ही ) मृत्यु को प्राप्त हुए हैं । उनके संघ में भयंकर विग्रह हो रहा है। सभी श्रमण एक दूसरे पर आक्षेपप्रत्याक्षेप कर रहे हैं । भन्ते ! मुझे भी ऐसा अनुभव होता है कि भगवान् के बाद भी संघ में कहीं ऐसा विग्रह उत्पन्न न हो जाये । वह विवाद बहुत जनों के असुख के लिए, बहुत जनों के अनर्थ के लिए, देव- मनुष्यों के अहित और दुःख के लिए होगा ।'
भगवान् ने प्रश्न किया - "आनन्द ! साक्षात्कार कर मैंने जिन धर्मों का उपदेश किया है, क्या इन धर्मों में दो भिक्षुओं की भी मत- भिन्नता दिखलाई देती है ?" आयुष्मान् आनन्द ने निवेदन किया—“भन्ते ! भगवान् ने धर्म-साक्षात्कार
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