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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन गुप्त मौर्य के १५५ वर्ष पूर्व महावीर का निर्वाण हुआ था। दूसरी बात यह है कि कुछ जैन ग्रन्थों के अनुसार महावीर का निर्वाण विक्रम के राज्यारोहण से नहीं, अपितु जन्म से ४७० वर्ष पूर्व हुआ था। उनके अनुसार विक्रम-जन्म की घटना का सम्बन्ध ई० पू० ५८ में स्थापित विक्रम संवत् से नहीं है, इसलिए ई० पू० ५२८ की तारीख महावीर-निर्वाण के लिए निर्विरोध परम्परा के रूप में स्वीकार नहीं की जा सकती। कुछ जैन लेखक विक्रम के जन्म और विक्रम सम्बत् की स्थापना के बीच १८ वर्ष का अन्तर मान लेते हैं और इस प्रकार जैन परम्परा से सम्बन्धित महावीर-निर्वाण की तारीख (५८+१८+ ४७० = ई० पू० ५४६) को लंकावासियों द्वारा मान्य बुद्ध-निर्वाण की तारीख ई० पू० ५४४ के साथ संगति बिठाना चाहते हैं, किन्तु यह सुझाव भी किसी प्रामाणिक परम्परा पर आधारित नहीं कहा जा सकता है । मेस्तंग के अनुसार अन्तिम जिन अर्थात् तीर्थङ्कर का निर्वाण पारम्परिक विक्रम के जन्म से नहीं, अपितु उसकी विजय तथा शक राज्य की समाप्ति से ४७० वर्ष पूर्व हुआ था। ज्ञातपूत्र के निर्वाण की ई० पू० ५२८ की तारीख की बुद्ध के निर्वाण की कैन्टनीज तारीख (ई० पू० ४८६) के साथ कुछ अंशों में संगति बिठाई जा सकती है। परन्तु तब हमें यह मानना पड़ेगा कि बुद्ध के बोधि-लाभ के थोड़े ही समय पश्चात् व उनके निर्वाण से ४५* वर्ष पूर्व ही महावीर का निर्वाण हो जाता है तथा यह भी नहीं हो सकता कि उस समय बुद्ध एक दीर्घकालीन प्रसिद्ध धार्मिक आचार्य बन गए हों; जैसा कि बौद्ध-शास्त्र हमें मानने को बाधित करते हैं। कुछ जैन सूत्र ऐसा बताते हैं कि अजातशत्रु के राज्यारोहण तथा उसके अपने पड़ोसी शत्रुओं के साथ युद्ध प्रारम्भ होने के सोलह वर्ष बाद महावीर का निर्वाण हुआ। इससे तो महावीरनिर्वाण बुद्ध-निर्वाण से ८ वर्ष बाद होगा, क्योंकि लंका की गाथाओं (Chronicles) के अनुसार बुद्ध अजातशत्रु के राज्यारोहण के ८ वर्ष बाद निर्वाण-प्राप्त हुए। इस दृष्टिकोण के अनुसार तीर्थकर महावीर का निर्वाण ई० पू० ४७८ में होगा, यदि हम कैन्टनीजपरम्परा (ई० पू० ४८६) को स्वीकार करें; और यदि लंका की परम्परा (ई० पू० ५४४) को स्वीकार करें तो ई० पू० ५३६ में होगा। ई० पू० ४७८ की तारीख हेमचन्द्र के उल्लेख के साथ लगभग मेल खाती है तथा इसके आधार पर चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण ई० पू० ३२३ में ठहरता है, जो असत्य नहीं हो सकता। किन्तु स्वयं महावीर के सम्बन्ध में यह निष्कर्ष बौद्ध-शास्त्रों के उस स्पष्ट प्रमाण के साथ कुछ भी मेल नहीं खाता, जो बुद्ध को अपने ज्ञात्रिक प्रतिस्पर्धी (महावीर) के बाद भी जीवित बताते हैं। जैन परम्परा के अनुसार 'तीर्थकर महावीर का निर्वाण अजातशत्रु के राज्याभिषेक के लगभग सोलह वर्ष बाद हुआ।' the same teacher before the eighth year of Ajatsatru, if we assume that the Jains, who refer to Kunika as the ruler of Champa, begin their reckoning from the accession of the prince to the viceregal throne of Champa while the Buddhist make the accession of Ajastsatru to the royal throne of Rajgriha the basis of their calculation." * यहां ४२ वर्ष होना चाहिए। लगता है, भूल से ४५ वर्ष छपा है ; क्योंकि ई० पू० ५२८ और ई०पू० ४८६ बीच ४२ वर्ष का अन्तर है। ४५ वर्ष मानने से तो बुद्ध को महावीरनिर्वाण के समय बोधि-लाम भी नहीं हो सकता। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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