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इतिहास और परम्परा ]
काल- निर्णय
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बताया गया है ।" यह इससे भी स्पष्ट है कि उक्त नामों में मक्खली गोशालक और पूर्णकाश्यप के नाम भी आये हैं; जो कि सर्वसम्मत रूप से बुद्ध से पूर्व ही निधन प्राप्त कर चुके थे । इस प्रकार उक्त प्रसंग बुद्ध की ज्येष्ठता का निर्णायक प्रमाण नहीं बन सकता ।
डा० शान्तिलाल शाह
सन् १९३४ में डा० शान्तिलाल शाह की Chronological Problems नामक पुस्तक बोन (जर्मनी) से प्रकाशित हुई थी । लेखक के शब्दों में "इस पुस्तक का उद्देश्य केवल महावीर और बुद्ध की निर्वाण तिथि व चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक की राज्यारोहण तिथि को ही निश्चित करना नहीं है और न जैन धर्म के पारम्परिक तथ्यों को ही प्रामाणिकता देना है, अपितु उत्तर भारत के अजातशत्रु से लेकर कनिष्क तक के सभी राजाओं के कालक्रम का नव-सर्जन करना है ।" अपने उद्देश्य के अनुसार अजातशत्रु से लेकर कनिष्क तक के काल-क्रम को नया रूप देने का लेखक ने भरसक प्रयत्न किया है । कुछ एक नये तथ्यों को ऐतिहासिक रूप देने में सफल भी हुए हैं; किन्तु यत्र-तत्र जैन पारम्परिक मान्यताओं को ऐतिहासिकता देने में उनका आग्रह-सा भी व्यक्त हुआ है ।
डा० शाह के अनुसार महावीर का निर्वाण काल ई० पू० ५२७ व बुद्ध का निवाणकाल ई० पू० ५४३ है । दोनों ही निर्वाण-कालों को उन्होंने अपने शब्दों में केवल पारम्परिक आधारों पर ही स्वीकार किया है। पारम्परिक मान्यताएं भी ऐतिहासिक हो जाती हैं, यदि उन्हें अन्य समर्थन मिल जाते हैं। पर डा० शाह ने इस अपेक्षा को अधिक महत्त्व नहीं दिया । परम्परागत उक्त तथ्यों को ही मूलभूत मानकर उन्होने सम्राट् कनिष्क तक की काल-गणना को घटित करने का प्रयत्न किया है । इससे बहुत सारे सर्वमान्य ऐतिहासिक तथ्य मी विघटित हो गये हैं । उदाहरणार्थ - चन्द्रगुप्त मौर्य का ई० पू० ३२२ का राज्याभिषेक - काल
१. मिलिन्द - पञ्हो ।
२. मक्खली गोशाल की मृत्यु भगवान् महावीर के निर्वाण से १६ वर्ष पूर्व ही हो चुकी थी । डा० शाह ने सामगाम सुत्त में बुद्ध द्वारा किये गये महावीर मरण के संवादश्रवण को 'गोशाले के मरण' के रूप में माना है । डा० कोबी, मुनि कल्याण विजयजी, डा० जायसवाल आदि सभी ने महावीर और बुद्ध का जो काल-क्रम माना है, उन सब में गोशालक बुद्ध से पूर्व निर्वाण प्राप्त ही माने गये हैं ।
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३. देखें, 'समसामायिक धर्म-नायक' प्रकरण के अन्तर्गत 'जीवन परिचय' ।
४. इस पुस्तक पर प्रकाशक और प्राप्ति स्थान नहीं दिया गया है ।
. Nor alone to fix the death-year of Buddha or Mahavira or the coronation dates of Chandragupta and Ashoka, nor to authenticate the Jaina traditional account, but also to reconstruct the chronology of the whole history of Northern India from Ajatasatru to Kaniska is the aim of this book; because, chronology is not one or two dates, but the record of the whole chain of event in time order. -Chronological Problems, preface p. 1
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