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________________ ६४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ के बाद संघ-विच्छेद कर अलग हुआ था । महावीर के निर्वाण का संवाद सारिपुत्त के जीवनकाल में बुद्ध को मिला था। सारिपुत्त का देहान्त बुद्ध के पूर्व ही हुआ-इसमें बौद्ध लेखक एक मत हैं।' उपर्युक्त सारे बौद्ध उल्लेखों को परस्पर मिलाने से प्रकट होता है कि महावीर का निर्वाण-अजातशत्रु के राज्यारोहण के बाद देवदत्त के विषय में बुद्ध द्वारा उदगार प्रगट किये जाने और सारिपुत्र के देहान्त के बीच होना चाहिए। बुद्ध का निर्वाण अजातशत्रु के राज्यकाल के ८ वें वर्ष में बतलाया गया है। यदि यह ठीक मान लिया जाय तो महावीर का निर्वाण अजातशत्रु के राज्याभिरूढ़ होने के और भी कम अवधि के अन्दर घटित होना चाहिए और अजातशत्रु के राज्यत्वकाल के प्रथम वर्ष के पहले नहीं हो सकता । हम भगवान् महावीर के निर्वाण को अजातशत्रु के राज्यत्वकाल के प्रथम वर्ष में ही मानकर देखें कि उसका क्या नतीजा निकलता है। इसका अर्थ होता है कि जब महावीर ने ७२ वर्ष की अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया, उस समय तथागत बुद्ध की अवस्था ७३ वर्ष की थी। जब महावीर ने ४२ वर्ष की अवस्था में केवल ज्ञान प्राप्त किया; तब बुद्ध की अवस्था ४३ वर्ष की थी। अर्थात उन्हें बोधि प्राप्त किये ८ वर्ष हो चुके थे। जब महावीर ने तीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा-ग्रहण की, उस समय बुद्ध की अवस्था ३१ वर्ष की थी और उन्हें प्रव्रज्या ग्रहण किये तीन वर्ष हो चुके थे। जब महावीर का जन्म हुआ, उस समय बुद्ध १ वर्ष के थे।" उक्त विवेचन केवल इसी आधार पर ठहरता है कि 'अजातशत्रु के राज्यारोहण के ८ वर्ष बाद बुद्ध का निर्वाण हुआ'। पर स्वयं रामपुरियाजी ने भी 'यदि यह ठीक मान लिया जाये तो' कह कर ही इस तथ्य को प्रस्तुत किया है। वस्तुस्थिति यह है कि '८ वर्ष' की मान्यता केवल महावंश ग्रन्थ की काल-गणना के आधार पर चलती है और वह काल-गणना विद्वानों की दृष्टि में प्रमाणित नहीं है। __दूसरा प्रसंग परिनिर्वाण के समय बुद्ध को सुभद्र परिव्राजक द्वारा पूछे गये प्रश्न से सम्बन्धित है । इस प्रसंग को उद्धृत करते हुए रामपुरियाजी लिखते हैं : "इस प्रसंग से प्रश्न उठता है कि क्या बुद्ध के परिनिर्वाण के दिन तक महावीर जीवित थे ? सुभद्र का प्रश्न जीवित तीर्थङ्करों के बारे में था या निर्वाण-प्राप्त तीर्थङ्करों के सिद्धान्तों की चर्चा-मात्र?" उक्त प्रसंग को भी रामपुरियाजी ने बहुत सजगता से तोला है; क्योंकि ऐसे प्रश्न बहुत बार ढर्रे के रूप में भी हुआ करते हैं और यह प्रश्न तो छहों नाम साथ बोल देने के ढरे रूप ही हुआ है ; यहां तक कि राजा मिलिन्द के साक्षात्कार के सम्बन्ध में भी इन्हीं छः नामों का उल्लेख हुआ है, जब कि राजा मिलिन्द का बुद्ध-निर्वाण के ५०० वर्ष पश्चात् होना १. Edward J. Thomas, The Life of Buddha, PP. 140-141. २. अजातसत्तुनो अट्ठमे वस्से मुनि निव्वुते। -महावंश, परिच्छेद २ । ३. द्रष्टव्य-"त्रिपिटक साहित्य में महावीर" प्रकरण के अन्तर्गत 'सुभद्र परिब्राजक'। ४. मिलिन्द-पञ्हो। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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