SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इतिहास और परम्परा ] काल- निर्णय ६३ ज्यों-की-त्यों बनी रहे, यह कैसे बुद्धिगम्य हो सकता है। दूसरी बात, जैसे कि कुछ विद्वानों का मत है, उपलब्ध बौद्ध पिटकों का प्रणयन बुद्ध-निर्वाण से दो-तीन शताब्दी बाद हुआ । वहां तक भी वह भूल ज्यों-की-त्यों चलती रही, यह कैसे शक्य हो सकता है, जब कि महावीर और बुद्ध लगभग एक ही सीमित क्षेत्र में विहार करने वाले और एक ही श्रमण परम्परा के उन्नायक थे । श्री विजयेन्द्र सूरि के प्रतिपादन में एक असंगति और खड़ी होती है । वह यह है कि एक ओर वे मानते हैं – 'बुद्ध ने गोशालक के मरण को महावीर के मरण के रूप में सुना', दूसरी ओर वे मानते हैं— 'बुद्ध और गोशालक ; दोनों का ही निधन भगवान् महावीर के निर्वाण से १६ वर्ष पूर्व हुआ ।" ऐसी स्थिति में बुद्ध गोशालक के मृत्यु- संवाद को कैसे सुनते, जबकि पिटकों के अनुसार बुद्ध ने अपने निर्वाण से वर्षों पूर्व ही उस संवाद को सुन लिया था ? यदि पिटकों के आधार पर यह माना जाये कि ऐसी कोई घटना घटित हुई थी तो क्या यह भी मान लेना अपेक्षित नहीं होगा कि वह उनकी मृत्यु से वर्षों पूर्व हुई थी । श्री श्रीचन्द रामपुरिया प्रस्तुत विषय पर एक विवेचनात्मक निबन्ध श्रीचन्दजी रामपुरिया का प्रकाशित हुआ है । उन्होंने अपने निबन्ध में प्रस्तुत विषय के पक्ष और विपक्ष की लभ्य सामग्री का सुन्दर संकलन किया है तथा प्रचलित घटनाओं की यौक्तिक समीक्षा भी की है पर उन्होंने विषय को किसी निर्णायक स्थिति पर नहीं पहुंचाया है । उनका अधिक सुझाव 'महावीर की ज्येष्ठता' का लगता है, क्योंकि उन्होंने डा० जेकोबी और मुनि कल्याण विजयजी के लगभग सारे तर्कों का निराकरण किया है, जो कि उन्होंने बुद्ध की ज्येष्ठता प्रमाणित करने के पक्ष में की हैं । इस सम्बन्ध में उन्हें केवल दो ही प्रसंग ऐसे लगे हैं, जो महावीर की ज्येष्ठता में विचारणीय बनते हैं । महावीर की प्रेरणा से अभयकुमार व बुद्ध के बीच हुए प्रश्नोत्तर और देवदत्त के बारे में बुद्ध द्वारा प्रयुक्त कठोर शब्दों से पहले का प्रसंग सम्बन्धित है । इन दोनों घटनाओं को जोड़कर रामपुरियाजी इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं: "महावीर ने अभयकुमार को चर्चा के लिए भेजा, उसका विषय देवदत्त को बुद्ध द्वारा कहे गये अन्तिम कठोर वचनों का औचित्य अनौचित्य था । ......................इससे स्पष्ट होता है कि देवदत्त के बारे में बुद्ध द्वारा कठोर शब्द कहे जाने के प्रसंग के कुछ साल बाद तक महावीर जीवित थे । देवदत्त अजातशत्रु के राज्याभिरूढ़ होने १. तीर्थंकर महावीर, भाग २,, पृ० ३२६ । २. जैन भारती, वर्ष १२, अंक १, पृ० ५-२१ । ३. विस्तार के लिए देखें, “त्रिपिटक साहित्य में महावीर" प्रकरण के अन्तर्गत 'अभय राजकुमार' | ४. विस्तार के लिए देखें, “विरोधी शिष्य" प्रकरण के अन्तर्गत 'देवदत्त' 1 Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy