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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
उपस्थित करते हैं : “महावीर अजातशत्रु की राज्य प्राप्ति के सोलह वर्ष से भी अधिक जीवित रहे थे और बुद्ध उसके राज्य काल के ८वें वर्ष में ही देह मुक्त हो चुके थे ।""
जैसा कि बताया गया - कोणिक के राज्य काल के ८वें वर्ष में बुद्ध-निर्वाण की बात उत्तरकालिक और नितान्त पौराणिक है। उसे एक क्षण के लिए सही मान लें, तो भी जैनपरम्परा के अनुसार महावीर - निर्वाण और श्रेणिक के देह मुक्त होने में जो १७ वर्ष का अन्तर माना जाता है, उसके साथ इसकी कोई संगति नहीं बैठती है; क्योंकि कोणिक का राज्यारोहण भगवान् महावीर के निर्वाण से लगभग १७ वर्ष पूर्व हुआ था । इस स्थिति में यदि बुद्ध का निर्वाण कोणिक - राज्यारोहण के ८ वें वर्ष में माना जाए तो बुद्ध और महावीर के निर्वाण में वर्ष से अधिक अन्तर रहना सम्भावित नहीं है । किन्तु दूसरी ओर स्वयं मुनि कल्याण विजयजी के अनुसार ही बुद्ध और महावीर के निर्वाण काल में १४- ३ वर्ष का अन्तर
माना गया है ।
इतनी बड़ी असंगतियों के रहते हुए उनका समाधान कैसे बुद्धिगम्य हो सकता है ? इतिहास के क्षेत्र में जाकर हमें इतिहास की मर्यादाओं में ही विषय को परखना चाहिए ।
श्री विजयेन्द्र सूरि
श्री विजयेन्द्र सूरि द्वारा लिखित तीर्थङ्कर महावीर दो खण्डों में प्रकाशित हुआ है । " ऐतिहासिक तथ्यों का वह भरा-पूरा आकलन है । श्री विजयेन्द्र सूरि ने अनेकानेक प्रमाणों से भगवान् महावीर का निर्वाण-काल ई० पू० ५२७ था, यह स्थापना की है । उन्होंने बुद्ध का निर्वाण-काल ई० पू० ५४४ माना है । ६ कहना चाहिए, उन्होंने सम्भवत: समग्र रूप से मुनि विजयजी की धारणा का समर्थन किया | बौद्ध पिटकों में आए हुए महावीर - निर्वाण के प्रसंगों पर उन्होंने डॉ० ए० एल० बाशम की इस मान्यता को सम्भावित माना है कि वह वस्तुतः गोशालक का मरण था, जिसे बौद्ध - शास्त्र - संग्राहकों ने महावीर का मरण समझ लिया था ।
श्री विजयेन्द्र सूरि की उपरोक्त धारणा भी कल्पना प्रधान है, न कि प्रमाण- प्रधान । कुछ समय के लिए गोशालक के मरण को महावीर का मरण समझा मी जा सकता है, पर गोशालक की मृत्यु के पश्चात् भगवान् महावीर सोलह वर्ष और जीये और वह भ्रान्ति
१. वीर - निर्वाण सम्वत् और जैन काल-गणना, पृ० ७ ।
२. यह तथ्य 'डा० जेकोबी की दूसरी समीक्षा' के अन्तर्गत 'असंगतियां' में प्रमाणित
किया चुका है ।
३. वीर - निर्वाण सम्वत् और जैन काल-गणना, पृ० १८ ।
४. काशीनाथ सराक, यशोधर्म मन्दिर, बम्बई से प्रकाशित, १६६३ ।
५. तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृ० ३१६-३२४ ।
६. वही, पृ० ३२६ ।
७. आजीवक, पृ० ७५ ।
८.
तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृ० ३२३ ।
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