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इतिहास और परम्परा ]
काल-निर्णय
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दीघ निकाय में इसी प्रसंग पर आगे बताया गया है कि अजातशत्रु सभी धर्माचार्यों की गौरव गाथा सुनता है और अन्त में बुद्ध के पास धर्म चर्चा के लिए जाता है । वहाँ जाकर वह बुद्ध से 'श्रामण्य-फल' पूछता है और यह भी बताता है कि 'मैं यही श्रामण्य फल निगंठ नातपुत्त प्रभृत्ति छहों धर्माचार्यों से पूछ चुका हूं ।' बुद्ध और अजातशत्रु का यह प्रथम सम्पर्क था । ऐसी स्थिति में क्या यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि निगंठ नातपुत्त प्रभृति छहों धर्म- नायक बुद्ध से ज्येष्ठ थे ।
उत्तरकालिक ग्रन्थों में
इसके अतिरिक्त मुनि कल्याण विजयजी ने श्रेणिक और चेल्लणा सम्बन्धी ऐसी जैन जनश्रुतियों का प्रमाण दिया है, जिनमें राजा श्रेणिक के पहले बौद्ध व पीछे जैन बनने का उल्लेख है ' ; पर वास्तव में ये सारी बातें उत्तरवर्ती जैन-कथाओं की हैं; अतः ऐतिहासिक दृष्टि में इनका विशेष स्थान नहीं बन पाता । किस ग्रन्थ के आधार पर उन्होंने इन कथाओं का उल्लेख किया है ; यह स्वयं उन्होंने भी नहीं लिखा। इसी प्रकार बुद्ध के ज्येष्ठ होने के पक्ष में उन्होंने उत्तरवर्ती बौद्ध साहित्य से भी पांच मायन्ताएं चुनी हैं, जिनका मौलिक आधार वे स्वयं भी नहीं दे पाये हैं । अधिकांश मान्यताएं ऐसी हैं, जिनका मूल पिटकों से कोई सम्बन्ध नहीं है ; अपितु कहीं-कहीं तो वे विरोधाभास उत्पन्न कर देती हैं ।
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असंगतियां
मुनि कल्याण विजयजी ने बुद्ध को बड़े और महावीर को छोटे प्रमाणित करने में जितनी भी युक्तियां दी हैं, उनका सबल होना तो दूर, वे पर्याप्त भी नहीं है । उनके द्वारा की गई संगतियों से कुछ एक महान् असंगतियों का आविर्भाव हो जाता है । जैसे कि त्रिपिटक एक धारा से यह कहते हैं - महावीर का निर्वाण बुद्ध से पूर्व हुआ। इतना ही नहीं, पिटकों ने स्वयं बुद्ध के मुँह से कहलवाया है - " मैं सभी धर्मनायकों में छोटा हूं।" तथा उनमें और भी अनेक स्थलों पर बुद्ध को सभी धर्म-नायकों से छोटा कहा गया है। मुनि कल्याण विजयजी उक्त प्रसंगों की कोई संगति नहीं दे पाए हैं । उन्होंने सर्वत्र ऐसे प्रसंगों को काल्पनिक और भ्रामक कह कर टाला है । यह उचित नहीं हुआ है और न बोद्ध पिटकों के साथ न्याय भी । पूर्व और पश्चिम के लगभग सभी इतिहासकारों ने महावीर और बुद्ध के काल-निर्णय में इन आधारों को मूलभूत माना है ।
दूसरी असंगति यह है कि मुनि कल्याण विजयजी कोणिक के राज्य-काल के दवें वर्ष में बुद्ध-निर्वाण सम्बन्धी उत्तरकालिक ग्रन्थों की मान्यता को मूलभूत मान कर चले हैं और गोशालक के चरम निरूपण से महावीर का १६ वर्ष का जीवन काल बताकर यह निष्कर्ष
१. वीर निर्वाण सम्वत् और जैन काल-गणना, पृ० २ ।
२. वही, पृ० १ ।
३. इन सब प्रसंगों की विस्तृत चर्चा प्रस्तुत प्रकरण के अन्तर्गत 'महावीर की ज्येष्ठता' में की गई है ।
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