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________________ इतिहास और परम्परा] काल-निर्णय वर्ष ५ मास १५ दिन पूर्व निर्वाण प्राप्त हो चुके थे। अर्थात् बुद्ध महावीर से आयु में लगभग २२ वर्ष बड़े थे। इसी तथ्य को काल-गणना में इस प्रकार बांधा जा सकता है बुद्ध का निर्वाण-ई० पू० ५४२ (मई) महावीर का निर्वाण-ई० पू० ५२८ (नवम्बर)' उन्होंने भगवान् महावीर का निर्वाण ई० पू० ५२७ माना है। यह परम्परा सम्मत भी है और प्रमाण-सम्मत भी। मुनि कल्याण विजयजी ने इसी निर्वाण-संवत् को और भी विभिन्न युक्तियों और प्रमाणों से पुष्ट किया है। उन्होंने बुद्ध का निर्वाण महावीर-निर्वाण से लगभग १५ वर्ष पूर्व माना है। इस मान्यता में उनका आधार यह रहा है कि सामगाम सत्त में बुद्ध जो महावीर-निर्वाण की बात सुनते हैं, वह यथार्थ नहीं थी। गोशालक की तेजोलेश्या से भगवान् महावीर बहुत पीड़ित हो रहे थे। उस समय लोगों में यह चर्चा उठी थी कि 'लगता है, अवश्य ही महावीर गोशालक की भविष्यवाणी के अनुसार ६ महीने में ही काल-धर्म को प्राप्त हो जायेंगे।' उनका कहना है, सम्भवत: इसी निराधार अपवाद से महावीर-निर्वाण की बात चल पड़ी हो। वे लिखते हैं : "जिस वर्ष में ज्ञातपुत्र के मरण (मरण की अफवाह) के समाचार सुने, उसके दूसरे ही वर्ष बुद्ध का निर्वाण हुआ। बौद्धों के इस आशय के लेख से हम बुद्ध और महावीर के निर्वाण-समय के अन्तर को ठीक तौर से समझ सकते हैं।" भगवती सूत्र के अनुसार महावीर गोशालक के तेजोलेश्या-प्रसंग के बाद १६ वर्ष जीए थे; यह पहले बताया जा चुका है। इसी आशय को पकड़ कर मुनि कल्याण विजयजी ने बुद्ध के निर्वाणकाल को निश्चित किया है। उन्होंने यह भी माना है : “मेरा यह आनुमानिक काल दक्षिणी बौद्धों की परम्परा के साथ भी मेल खाता है।" जहां तक महावीर के निर्वाण-समय का सम्बन्ध है, मुनि कल्याण विजयजी ने सचमुच ही यथार्थता का अनुसरण किया है। किन्तु, बुद्ध-निर्वाण के सम्बन्ध में तो उन्होंने अटकलबाजी से ही काम लिया है। बौद्ध-शास्त्रों में उल्लिखित महावीर के निर्वाण-प्रसंगों को उन्होंने बहत ही उलट कर देखा है । इस प्रकार खींचतान करके निकाले गए अर्थ कभी ऐतिहासिक तथ्य नहीं बन सकते। दक्षिणी बौद्धों की परम्परा के साथ अपनी निर्धारित तिथि का मेल बिठाना भी नितान्त खींचतान ही है। दोनों समयों में लगभग दो वर्षों का स्पष्ट अन्तर पड़ता है। उसे किसी प्रकार नगण्य नहीं माना जा सकता, जैसा कि उन्होंने मानने के लिए कहा है। मुनि कल्याण विजयजी ने भगवान् बुद्ध को ज्येष्ठ मानने में एक प्रमाण यह दिया है : "बौद्ध साहित्य में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी तीर्थङ्करों का जहां-जहां उल्लेख हुआ है, वहां-वहां सर्वत्र १. ई० पू० ५२८ के नवम्बर महीने और ई० पू० ५२७ में केवल २ महीने का ही अन्तर है ; अतः महावीर-निर्वाण का काल सामान्यतया ई०पू० ५२७ ही लिखा जाता है। मुनि कल्याण विजयजी ने भी इसका प्रयोग यत्र-तत्र किया है। २. वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना, पृ० १५। ३. वही, पृ० १६०। ४. वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना, पृ०१६० । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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