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________________ इतिहास और परम्परा] काल-निर्णय डा० जायसवाल ने महावीर-निर्वाण-सम्बन्धी बौद्ध उल्लेखों की उपेक्षा न करने की जो बात कही, वह वस्तुतः ही न्याय-संगत है । सामगाम सुत्त के आधार पर बुद्ध से दो वर्ष पूर्व महावीर का निर्वाण मानना और ४७० में १८ वर्ष जोड़कर महावीर और विक्रम की मध्यवर्ती अवधि निश्चित करना, पुष्ट प्रमाणों पर आधारित नहीं है। इतिहासकारों का कहना है : “यह मान्यता किसी भी प्रामाणिक परम्परा पर आधारित नहीं है। आचार्य मेरुतुंग' ने महावीर-निर्वाण और विक्रमादित्य के बीच ४७० वर्ष का अन्तर माना है। वह अन्तर विक्रम के जन्मकाल से नहीं, अपितु शक-राज्य की समाप्ति और विक्रम-विजय के काल से है"। इसके अतिरिक्त डा. जायसवाल ने सामगाम सुत्त के आधार पर बुद्धनिर्वाण से दो वर्ष पूर्व जो महावीर-निर्वाण माना है, वह भी आनुमानिक ही ठहरता है। डा. राधाकुमुद मुकर्जी ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ Hindu Civilization (हिन्दू सभ्यता) में डा० जायसवाल की तरह ही महावीर की ज्येष्ठता और पूर्व-निर्वाण-प्राप्ति का यौक्तिक समर्थन किया है। उनकी मान्यता में उक्त दोनों तथ्य सर्वथा असंदिग्ध है। उनके अपने विवेचन में विशेषता की बात यह कि उन्होंने महावीर की ज्येष्ठता को मी अनेक प्रकारों से मान्यता दी है। ___महावीर और बुद्ध के काल-निर्णय में डा० मुकर्जी ने डा० जायसवाल के मत को अक्षरशः अपनाया है, जिसके अनुसार महावीर का निर्वाण-काल ई० पू० ५४६ और बुद्ध का निर्वाण-काल ई०पू० ५४४ है। इस काल-क्रस से महावीर की ज्येष्ठता के निरूपण में विसंवाद (Self contradiction) पैदा हो गया है। महावीर की आयु ७२ वर्ष और बुद्ध की आयु ८० वर्ष थी; अतः इससे बुद्ध महावीर से ८ वर्ष बड़े हो जाते हैं। निष्कर्ष यह है कि डा० मुकर्जी महावीर की ज्येष्ठता और पूर्व-निर्वाण-प्राप्ति को मानते हुए भी, उसे काल-क्रम के साथ घटित न कर पाये हैं। डा० कामताप्रसाद जैन ने भी इसी काल-क्रम को अपनाया है, पर उनकी धारणा में १. विक्रमरज्जारंभा परओ सिरि वीर निव्वुइ भणिया। सुन्नु मुणि वेय जुत्तो विक्कम कालउ जिण कालो। -विचार श्रेणी, पृ० ३, ४। 2. The suggetion can hardly be said to rest on any reliable tradi tion. Merutunga places the death of the last Jina or Tirthankara 470 years before the end of Saka rule and the victory and not birth of the traditional Vikrama ---R.C. Majumdar, H.C. Raychoudhury and K.K. Dutta, An Advanced History of India, p. 85. ३. डा. वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा अनूदित व राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित । ४. हिन्दू सभ्यता, पृ० २१६, २२३, २२४ ।। ५. हिन्दू सभ्यता, पृ० २२३ (बुद्ध का निर्वाण-काल ई० पू० ५४३ बताया गया है। सिलोनी परम्परा के अनुसार ५४३-५४४ दोनों तिथियों का उल्लेख मिलता है। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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